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महावीर वाणी ६. इंदियकसायवग्घा संजमणरघादणे अदिपसत्ता।
वेरग्गलोहदढपंजरेहिं सक्का हु णियमेदुं ।। (भग० आ० १४०७)
इन्द्रिय और कषायरूपी सिंह, जो संयमरूपी मनुष्य का घाात करने में अत्यन्त आसक्त है, वैराग्यरूपी लोहे के दृढ़ पिंजरों से ही वश में किया जा सकता है। ७. इंदियकसायहत्थी वयवारिमदीणिदा उवायेण । विणयवरत्ताबद्धा सक्का अवसा वसे कादं।। (भग० आ० १४०८)
शीघ्र अधीन न होनेवाले इन्द्रिय और कषायरूपी हाथी किसी उपाय से व्रतरूपी घेरे में लाये जाकर विनयरूपी वरत्रा से बाँधेि जाने पर ही वश में किये जा सकते हैं। . ८. इंदियकसायहत्थी दुस्सीलवणं जदा अहिलसेज्ज। णाकुसेण तइया सक्का अवसा वसं काहुँ । ।(भग० आ० १४१०)
जब किसी के वश में नहीं आनेवाले इन्द्रिय और कषायरूपी हाथी दुःशीलरूपी वन में प्रवेश करने की इच्छा करते हैं, तब उनको ज्ञानरूपी अंकुश से ही वश में किया जा सकता है। ६. इंदियकसायदोसा णिग्घिप्पंति तवणाणविणएहिं।
रज्जूहि णिधिप्पंति हु उप्पहगामी जहा तुरया।। (मू० ७४०)
इनिद्रय और कषायरूपी दोष तप ज्ञान और विनय से निग्रह किये जा सकते हैं; जैसे उत्पथगामी घोड़े लगाम से। १०. जइ पंचिंदियदमओ होज्ज जणो रूसिदब्बय णियत्तो।
तो कदरेण कयंतो रूसिज्ज जए मणूयाणं ।। (मू० ८६८)
यदि मनुष्य पाँचों इन्द्रियों को दमन करने में लीन हो और क्रोधादि से निवृत्त हो, तो फिर इस जगत् में कौन-सा कारण है, जिससे यमराज मनुष्यों से गुस्सा कर सकता है ?