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________________ आठ पन्द्रहवीं, सोलहवीं तथा सतरहवीं ईस्वी शताब्दियों में, राजनीतिक तथा धार्मिक परिस्थितियाँ अनुकूल न होने पर भी, जैन साहित्य की गतिविधियाँविशेषतः काव्य रचना-प्रबल रही हैं । इस युग में प्रणीत जैन संस्कृत-महाकाव्यों का पर्यालोचन प्रस्तुत ग्रन्थ का विषय है । आलोच्य युग के जैन संस्कृत -महाकाव्य चिर-प्रतिष्ठित महाकाव्य-परम्परा का प्रसार है । यह सत्य है कि वे समवर्ती प्रवृत्तियों, अपने रचयिताओं के परिवेश तथा उपजीव्य ग्रन्थों के प्रभाव से अनुप्राणित हैं, किन्तु उनमें क्रमागत परम्परा से तात्त्विक भेद अधिक दिखाई नहीं देता। फिर भी जैन संस्कृत महाकाव्यों की निजी विशेषताएँ तथा प्रवृत्तियाँ हैं । अतः विवेच्य महाकाव्यों के स्वरूप के सम्यक् ज्ञान के लिये, प्रथम अध्याय में, उन प्रेरणाओं तथा प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है, जो इन काव्यों की प्रेरक हैं तथा जिन्होंने इनका स्वरूप निर्धारित किया है । एक अर्थ में, यह अध्याय, विवेचित महाकाव्यों की शिल्प एवं स्वरूपगत विशेषताओं का आकलन है। अगले चार अध्यायों में आलोच्य युग के महाकाव्यों का सांगोपांग विवेचन किया गया है, जो ग्रन्थ का सर्वस्व है । शैली के आधार पर महाकाव्यों का शास्त्रीय, शास्त्र, ऐतिहासिक तथा पौराणिक इन चार अनुभागों में वर्गीकरण किया गया है। शास्त्रकाव्यों में एक ऐसा काव्य (सप्तसन्धान) भी है, जो उक्त शती की कृति न होने पर भी उस कवि की रचना है जिसका अधिकतर जीवन सतरहवीं शताब्दी में बीता है । शास्त्रीय महाकाव्यों के गौरव के अनुकूल उनकी समीक्षा पहले की गयी है, तत्पश्चात् क्रमशः शास्त्र, ऐतिहासिक तथा पौराणिक महाकाव्यों की । इससे विवेचित महाकाव्यों के तिथिक्रम का कुछ व्यतिक्रम होता है। कतिपय पौराणिक महाकाव्य कुछ शास्त्रीय तथा ऐतिहासिक महाकाव्यों से पूर्व की रचनायें हैं। किन्तु इस व्यतिक्रम का परिहार किसी भी वैज्ञानिक वर्गीकरण से नहीं किया जा सकता। अतः महाकाव्यों के महत्त्व के आधार पर वर्गीकरण का उक्त मानदण्ड अनुचित नहीं है। प्रस्तुत युग में शास्त्रीय महाकाव्यों की रचना कम नहीं हुई, यह सुखद आश्चर्य है। ग्रन्थ में आठ शास्त्रीय महाकाव्यों का विवेचन मिलेगा, यद्यपि उनमें से कुछ के स्वरूप के विषय में मतभेद सम्भव है । आलोच्य काल के ऐतिहासिक महाकाव्य दो प्रकार के हैं । प्रथम प्रकार के ऐतिहासिक महाकाव्य इतिहास के प्रसिद्ध शासकों अथवा मन्त्रियों के वृत्त पर आधारित हैं । दूसरी प्रकार के महाकाव्य, परम्परागत अर्थ में, ऐतिहासिक पात्रों से सम्बद्ध नहीं हैं। उनमें जैन धर्म के बहुमानित आचार्यों एवं प्रभावकों का चरित निरूपित है । सब मिलाकर ग्रन्थ में २२ महाकाव्यों का पर्यालोचन किया गया है । इनमें आठ शास्त्रीय महाकाव्य हैं, दो शास्त्र काव्य, छह ऐतिहासिक तथा शेष पौराणिक रचनाएँ हैं । कतिपय काव्यों से तो जैन विद्वान् भी, प्रथम बार, इस ग्रन्थ में परिचित होंगे।
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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