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जैन संस्कृत महाकाव्य
स्वामी विद्यद्राज का पुत्र विद्युच्चर चोर, पांच सौ चोरों के साथ अर्हद्दास के घर में चोरी करने के लिये आता है (७६.५३-५६) । जम्बूस्वामिचरित में, पूर्व जन्म में, उसका पिता संवर हस्तिनापुर का शासक था । राजमल्ल के अनुसार यक्ष पूर्वजन्म में राजगृह के श्रेष्टी धनदत्त का पुत्र जिनदास था। उत्तरपुराण में उसे अर्हद्दास माना गया है, जो जम्बूस्वामिचरित में जिनदत्त का अग्रज है।
विद्युच्चर, माता जिनमती की प्रार्थना से, जम्बूकुमार को प्रस्तावित प्रव्रज्या से विमुख करने के लिये चार कथाएँ सुनाता है जिनका संचित सार यह है कि काल्पनिक सुख की प्राप्ति की आशा में वर्तमान सुख को त्यागना विवेकहीनता है। कुमार प्रत्येक कथा का एक-एक संवेगपोषक कथा से प्रतिवाद करता है । उत्तरपुराण तथा जम्बूस्वामिचरित की इन अवान्तर कथाओं के स्वरूप तथा क्रम में पूर्ण साम्य न होते हुए भी, भाव की दृष्टि से, उनमें अधिक अन्तर नहीं है। विद्युच्चर की कहानियाँ उपलब्ध सुख को सर्वस्व मानकर आसक्ति का पोषण करती हैं । जम्बू की कथाओं में वर्तमान प्रेय की अपेक्षा भावी श्रेय को अधिक सार्थक मानकर आसक्ति को उभारा गया हैं । कथाओं के क्रम की दृष्टि से यह उल्लेखनीय है कि उत्तरपुराण में विद्युच्चर की द्वितीय कथा को राजमल्ल ने उसके तृतीय दृष्टान्त के रूप में ग्रहण किया है ।१९ अदम्य लालच के कारण मांसपिण्ड छोड़कर मछली पकड़ने के प्रयास में मरने वाले शृगाल की, उत्तरपुराण में, विद्युच्चर द्वारा प्रस्तुत तीसरी कहानी का जम्बूस्वामिचरित में, विद्युच्चर की वृद्ध गृहस्थ वणिक् तथा उसकी पुंश्चली पत्नी की द्वितीय कथा में अन्तर्भाव किया गया है। राजमल्ल के काव्य में विद्युच्चर से पहले कुमार की चार नवोढा पत्नियाँ भी उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिये चार दृष्टांतों का निरूपण करती हैं और जम्बूकुमार उसी प्रकार उनका दृढ़तापूर्वक प्रतिवाद करता है। उत्तरपुराण में इनका अभाव है। किन्तु उत्तरपुराण में, जम्बूकुमार अपने पक्ष के समर्थन में कूप में लटके पुरुष तथा मधुस्राव की प्रख्यात कथा कहता है जिसे सुनकर उसके माता-पिता, पत्नियाँ और चौर सब सांसारिक भोगों से विरक्त हो जाते हैं । यह कहानी, जम्बू की तृतीय पत्नी विनयश्री द्वारा कही गयी दरिद्रसंख की कथा के प्रतीकार में प्रस्तुत कुमार के दृष्टान्त से सारतः भिन्न नहीं है ।
१८. उत्तरपुराण, ७६.१२४-१२६ १६. शृगाल और धनुष की यह कथा हितोपदेश में भी आती है। २०. उत्तरपुराण, ७६.१०२-१०७ २१. मधुबिन्दु वाले दृष्टान्त की कथा महाभारत (स्त्रीपर्व, ५), बौद्ध अवदानों और
ईसाई साहित्य में भी पायी जाती है । इसलिये यह संसार के सर्वमान्य कथासाहित्य की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।