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________________ ३३२ जैन संस्कृत महाकाव्य पूर्ण तथा सार्थक नाम पसन्द करता था।१३ नामकरण के अवसर पर शिशु का पिता अपने बन्धु-बान्धवों को ठाटदार भोज देता था क्योंकि अन्नदान सर्वोत्तम पुण्य है । अन्य दान अन्न-दान के पासंग भी नहीं हैं। सामूहिक भोज में लोग पंगत में बैठ कर भोजन करते थे । भोजन सोने, चांदी तथा कांसे के पात्रों में परसा जाता था।" प्रतिष्ठासोम ने काव्य में कई स्थानों पर तत्कालीन खाद्य पदार्थों की विस्तृत सूची दी है। उससे विदित होता है कि भोजन में सर्वप्रथम द्राक्षा, अखरोट, चारुवल्ली आदि फल तथा खांड दी जाती थी। मोदक, फाणित, खज्जक, घृतपूर्ण बड़े, लपसी, गुड़, सोमाल, कर, दाल, भात, मंडक, तैल, सुगन्धित घी तथा विविध पकवानों का उल्लेख भी काव्य में आया है ।५ पंगत में बैठे लोगों को गृहपति पंखों तथा वस्त्राचलों से हवा करता था ।१६ भोजन के अन्त में अतिथियों को पान देने की प्रथा थी। स्वर्णकणों तथा मणियों से युक्त विशेष पान का भी काव्य में उल्लेख किया गया है । पदप्रतिष्ठा तथा बिम्ब-स्थापना आदि अन्य विशिष्ट अवसरों पर भी इसी कोटि का सामूहिक भोज आयोजित किया जाता था। शिक्षा का समाज में बहुत महत्त्व था। विद्या को समस्त सम्पदाओं की जननी तथा कीर्ति का सोपान माना जाता था। समाज विद्याधन से सम्पन्न रंक को भी धनवान् मानता था। चित्त के अभेद्य कोश में स्थित इस धन को बांटना अथवा चुराना सम्भव नहीं । समाज का दृढ़ विश्वास था कि विद्याहीन पुरुष, संस्कारहीन मणि की भाँति ग्राह्य नहीं है । विद्या प्राप्ति का नियमित स्थान स्वभावतः विद्यालय था । स्वयं पिता शिशु को प्रविष्ट कराने के लिये जाता था। विद्यारम्भ आमोद-प्रमोद तथा दान-गान का पवित्र अवसर था। शिशु घोड़े पर बैठकर ठाट से प्रवेश के लिए लेखशाला जाता था। वहाँ पिता अपने पुत्र के अभ्युदय के लिए वाग्देवी सरस्वती की वन्दना करता था, याचकों को धन-वस्त्र आदि देता था और अध्यापकों तथा छात्रों को मधुर खाद्य पदार्थ भेंट करता था। विद्याध्ययन पाँच वर्ष की अवस्था में आरम्भ किया जाता था। १३. सान्वर्था ह्य तमानां स्यादाख्या ख्याता क्षमातले । वही, २.३६ १४. वही, २-२६ तथा ७.७८ १५. वही, २.२७-३२, ५.५८, ६.५५,७.७७ .१६. वही, २.३३ १७. भोजनान्ते च ताम्बूलवीटकानि समर्प्य सः । वही, २.३५ तथा ८.१२ . १५. कलधौतहेमटकैः कलितं ताम्बूलमतुलमदात् । वही, ६.६४ । १६. वही, ५.५८, ६.५५ आदि २०. वही, २.४७-५३ २१. वही, २.५६-६२
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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