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________________ हम्मीरमहाकाव्य : तयचन्द्रसूरि २६१ कहीं अधिक गम्भीर रहे होंगे । धर्मसिंह को दिया गया अमानुषिक दण्ड भी पराजय के कारणों की असाधारणता का सूचक है। धर्मसिंह की कथा को काल्पनिक मानने का कोई कारण नहीं है, यद्यपि हम्मीरविषयक अन्य किसी ग्रन्थ में उसकी चर्चा नहीं हुई है। नयचन्द्र ने हम्मीर की राजनीतिक भूलों तथा गलत आर्थिक नीतियों का विशद वर्णन किया है, जिनसे रुष्ट होकर प्रजा धीरे-धीरे उससे विमुख होती गयी। अन्य ग्रन्थों से भी इस धारणा की पुष्टि होती है कि हम्मीर के अन्तिम समय में प्रजा उससे बहुत कुछ विरक्त हो चुकी थी। दसवें सर्ग में वर्णित खल्जी सेना की पराजय तथा मुगल बंधुओं द्वारा जगरा की लूटपाट का वर्णन मुसलमानी तवारीखों में नहीं मिलता। उनके लिये यह कोई गौरव की बात नहीं थी। ग्यारहवें सर्ग में वर्णित विफल गढ़रोध तथा निसुरतखान की मृत्यु की प्राय: समूची कथा हिन्दू और अहिन्दू लेखकों द्वारा समर्थित है । नयचन्द्र के कथनानुसार उल्लूखान और निसुरतखान सन्धिवार्ता के व्याज से पहाड़ी घाटी में घुसने में समर्थ हुए, किन्तु वास्तविकता यह प्रतीत होती है कि यवन-सेना की अत्यधिक संख्या के कारण राजपूतों ने गढ़रोध सहना अधिक हितकर समझा। जिस वीरता से राजपूतों ने अलाउद्दीन के आक्रमण का मुंहतोड़ उत्तर दिया, उसका विशद वर्णन हम्मीरमहाकाव्य के अतिरिक्त अन्य अनेक काव्यग्रन्थों तथा मुसलमानी तवारीखों में भी प्राप्त है। अमीर खुसरो के अनुसार यवनसेना रजब से जीकाद (मार्च-जुलाई) तक किले को घेरे रही। किले से बाणों की वर्षा होने के कारण पक्षी भी नहीं उड़ सकते थे। इस कारण शाही बाज भी वहाँ तक न पहुँच सके। __हम्मीरमहाकाव्य से स्पष्ट है कि अन्ततः अलाउद्दीन गढ़रोध से थक गया था। प्रकारान्तर से यह कथन तारीखे फिरोजशाही से समर्थित है। यदि रतिपाल, रणमल्ल आदि हम्मीर से विश्वासघात न करते तो घेरा अवश्य उठ जाता । उसके अतिरिक्त दुर्ग में वस्तुतः दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। अमीर खुसरो ने लिखा है कि वे पत्थर खा रहे थे। चावल का एक दाना वे दो स्वर्ण मुद्राओं से खरीदने को तैयार थे और यह उन्हें न मिलता था। अतः नयचन्द्र का यह कथन कि भण्डार अन्न से परिपूर्ण था और जाहड़ कोठारी ने ग़लत सूचना दी थी, ठीक ७६. हम्मीरमहाकाव्य, प्रास्ताविक परिचय, पृ. १६ ८०. हम्मीरमहाकाव्य, ११.२३ ।। ८१. हम्मीरायण, भूमिका, पृ. १२१ ५२. वही, पृ० १२७ ८३. वही, पृ० ४७
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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