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जैन संस्कृत महाकाव्य
कालिदास है। इसका सुखद फल यह हुआ है कि भ० बा० महाकाव्य में अलंकृति तथा सहजता का मनोरम समन्वय है । माघ को आदर्श मानते हुए भी पुण्यकुशल ने अपनी कोकिला की तरह पंचम स्वर में गान नहीं किया है।५९ समूचा काव्य कवित्व की आभा से तरलित है। भाषा की प्रांजलता तथा कवित्व की कमनीयता की दृष्टि से भ० बा० महाकाव्य का संस्कृत के उत्तम काव्यों में निश्चित स्थान है।
५६. स्वरं न्यगादीविति पंचमोक्त्या। वही, १८.२४