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बंकचूलचरियं
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६२. धार्मिक वातावरण को पाकर उसने विषयासक्ति को दूर किया । अन्त में उसकी मृत्यु को समीप देखकर जिनदास ने उसे अनशन कराया।
६३. अनशन में बंकचूल ने अपने कृत पापों की आलोचना कर आत्मा को शुद्ध किया। बिना आत्मशुद्धि के सब व्यर्थ हैं।
६४. सब प्राणियों से हृदय से क्षमायाचना कर समाधि में लीन होकर वह प्रतिपल अपनी आत्मा का चिंतन करने लगा।
६५. अंत मैं मृत्यु को प्राप्त कर वह पवित्र भावों के कारण बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुआ। शुद्ध भावों का प्रभाव विचित्र है।
६६. मलिन भावना के कारण मुनि प्रसन्नचन्द्र नरक पर्यंत चले जाते हैं और फिर वे ही शुद्ध भावना से देवलोक तक चले जाते हैं।
६७. अत: भावों को शुद्ध रखना चाहिए। उन्हें मलिन नहीं करना चाहिए। मलिन विचार ही दुर्गति का कारण है और पवित्र विचार सद्गति का।
नवम सर्ग समाप्त विमलमुनिविरचित पद्यप्रबंधबंकचूलचरित्र समाप्त