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बंकचूलचरियं
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६१. मैं तुम्हारे इस सहयोग को कभी नहीं भूलूंगा। मेरा हृदय कुछ प्रत्युपकार करना चाहता है।
६२-६३. मैंने आज तक तुमको उपदेश नहीं दिया। लेकिन अब कुछ कहना चाहता हूं। यदि तुम्हारा मन सुनने को उत्सुक हो तो ध्यानपूर्वक मेरे वचन सुनो।
६४. उनकी वाणी सुनकर बंकचूल ने कहा- वही उपदेश दें जो मेरे लिए शक्य हो।
६५. तब समयज्ञ आचार्य ने उसको कहा-तुम अभी इन चार नियमों को ग्रहण करो
६६.(१) अज्ञात फल(जिस फल का नाम मालूम न हो) कभी मत खाना ।यह प्रथम नियम में स्वीकार करो।
६७-७० (२) सात-आठ कदम पीछे हटे बिना किसी पर कभी प्रहार मत करना । यह दूसरे नियम में स्वीकार करो।
(३) राजा की पत्नी को माता के समान समझना। यह तीसरे नियम में स्वीकार करो।
(४) कौओ का मांस कभी मत खाना । यह चौथे नियम में स्वीकार करो। इन चार नियमों को तुम शीघ्र ग्रहण करो । ये तुम्हारे लिए कल्याणप्रद होंगे। ७१. आचार्य के वचन सुनकर बंकचूल ने चारों नियम ग्रहण कर लिए।
७२. संकल्प करा कर उन्होंने बंकचूल से कहा- इन नियमों का सदा दृढ़ता से पालन करना।
७३. प्रतिकूल स्थिति को पाकर भी इन नियमों को नहीं तोड़ना यही मेरी अंतिम शिक्षा है।