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कचूच
को पुरुषवेश में देखकर कचूल विस्मित हो गया । इसने पुरुषवेश क्यों धारण किया है ? इत्यादि प्रश्न उसके मस्तिष्क में उभरने लगे। भाई को विस्मयान्वित देखकर उसने अपने पुरुषवेश धारण करने का प्रयोजन बताते हुए कहा — जब तुम यहां से चल गये तब तुम्हारी गुप्त गतिविधि का पता लगाने के लिए राज्य कर्मचारी नटवेष बनाकर आये । मैंने सोचा - यदि उन्हें मालूम हो जायेगा कि तुम यहां नहीं हो तो इस बस्ती को उजाड़ देंगे। अतः मैंने तुम्हारा वेश धारण कर उनका नाटक करवाया । जब वे गये तब प्रचुर रात्रि बीत गई थी । मैं थक गई और उसी वेश में भाभी के साथ सो गई । बंकचूला के मुख से समस्त वृत्तान्त सुनकर बंकचूल को पुन: आचार्य की स्मृति हो आई । यदि वे मुझे दूसरा नियम न दिलाते तो आज मेरी बहिन की मृत्यु हो जाती ।
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एक दिन बंकचूल राजमहल में चोरी करने के लिए गया । संयोगवश वह उसी कमरे में प्रविष्ट हुआ जहां रानी रहती थी । रानी ने उसे देख लिया । वह उसके रूप को देखकर कामातुर हो गई । उसने बंकचूल से पूछा -- तुम कौन हो, यहां क्यों आये हो? बंकचूल ने कहा- मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं । रानी ने कहा— यदि तुम मेरी बात मान लो तो तुम्हें यहां सब कुछ मिल सकता है । बंकचूल ने कहा- क्या ? कामातुर रानी ने अपनी विकार भावना रखी। उसे सुनकर बंकचूल को अपने तीसरे नियम की स्मृति हो आई । उसने रानी के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए कहा - आप तो मेरी माता के समान हैं । रानी कुपित हो गई । उसने कहा---यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो जानते हो तुम्हारी क्या दशा होगी ? बंकचूल ने कहाजो भी हो, किन्तु आप मेरी माता के ही समान हैं । तब रानी ने अपने अंगों को क्षत, विक्षत कर वस्त्र फाड़ लिये और द्वारपाल को आवाज दी- देखो ! मेरे महल में कौन आ गया ? द्वारपाल आया और बंकचूल को पकड़ कर ले जाने लगा । जिस समय रानी बंकचूल से बात कर रही थी उसी समय राजा वहां आ गया। उसने गुप्त रूप से सब दृश्य देख लिया था । अतः द्वारपाल को संकेत किया कि इसे गाढ बन्धन से मत बांधना, प्रात: मेरे सम्मुख उपस्थित करना ।
दूसरे दिन द्वारपाल बंकचूल को लेकर राजा के पास आया । राजा ने कचूल से रात्रिकालीन घटना पूछी। उसने सब यथार्थ बता दी । राजा ने परीक्षा करते हुए कहा – तुम साहसी हो, मेरे महलों में आये हो अत: तुम्हें रानी देता हूं । बंकचूल ने कहा— नहीं, रानी तो मेरी माता के समान हैं । तब राजा ने बात घुमाते