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- - - - - - - - - प्राकृत भाषा देवभाषा या दिव्यभाषा है। यह कहना कम मूल्यवान् नहीं होगा | कि वह जनभाषा है। वह जनभाषा है | इसलिए आज भी जीवित भाषा है। कुछ | रूपान्तर के साथ बहत्तर भारत के बड़े भाग में बोली जाती है। उसका मौलिक रूप आज व्यवहार भाषा का रूप नहीं | है, फिर भी अनेक भाषाओं और | | बोलियों का उद्गम स्रोत होने के कारण उसका अध्ययन और प्रयोग कम अर्थवाला नहीं है। एक जैन मुनि के लिए उसकी सार्थकता सदैव बनी
रहेगी। = | जैन साहित्य की कथाओं के | | आधार पर लिखित ये प्राकृत काव्य
प्राचीन परम्परा की कड़ी के रूप में | मान्यता प्राप्त करेंगे। मुनिजी ने | वर्तमान युग में प्राकृत भाषा में काव्य | लिखने का जो साहस किया है, उसके | लिए साधुवाद देय है यश से काव्य लिखा जाता है किन्तु यश से निरपेक्ष होकर केवल अंतःसुखाय लिखने की | प्रवृत्ति बहुत मूल्यवान् है। तेरापन्थ | धर्मसंघ में आज भी प्राकृत और संस्कृत ।
| जीवित भाषा है। उनके अध्ययन, # अध्यापन और रचना का प्रयोग । अविच्छिन्नरूप में चालू है।
-आचार्य महाप्रज्ञ !