________________
(xiv)
कथानक शब्द का अर्थ छोटी कहानियों का पिटारा है । कथा का आनक अर्थात् पेटिका है । यद्यपि कथानक शब्द साहित्य में सुप्रचलित है,तथापि अलंकारियों ने साहित्य के विभाजन के रूप में इसका उल्लेख नहीं किया है। किन्तु अग्निपुराण (३३७-२०) में गद्य साहित्य का विभाजन रूप से कथानिका,परिकहा और खण्ड कथा का उल्लेख है । आनन्दवर्धन धन्यालोक में (३.७) में उपर्युक्त विभाजन के साथ सरल कथा करके और भी एक विभाजन किया गया है । अभिनवगुप्त की टीका में इसकी विशद व्याख्या की गई है। लेकिन जैनियों ने जो कथानक साहित्य की सृष्टि की है वह तो सम्पूर्ण अलग तरह की है । मूलतः संग्रह के रूप से कथानक शब्द का व्यवहार किया गया है।
जैनियों ने संस्कृत,प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में गद्य और पद्य में बहुत ही कहानियां, आख्यान और उपाख्यान लिपिबद्ध करके भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। केवल संस्कृत और प्राकृत भाषा ही नहीं बल्कि आधुनिक प्रान्तीय भारतीय भाषा में भी इसका एक अभावनीय संकलन दृष्ट होता है। इसलिए प्राचीन गुजराती,राजस्थानी और हिन्दी में बहुत ही कथानक आख्यायिका का समावेश है। केवल भारतीय आर्यभाषा में ही नहीं अपितु प्राचीन तमिल, कन्नड़, तेलगु, मलयालम इत्यादि भाषा में भी बहुत ही जैन कहानियां मिलती हैं। इस प्रकार के साहित्य को संक्षेप में लोक साहित्य भी बोल सकते हैं । साधारणतया इस सब साहित्य का रचना काल त्रयोदशशताब्दी से शुरू हुआ है । गद्य और पद्य इस किस्म की कहानियों के वाहन
अभी तक हम लोग यह मानते हैं-जैनियों के बीच में सबसे जनप्रिय प्राचीन साहित्य है-कालकाचार्य कथानक । इस काव्य के रचयिता और किस समय में लिखा हुआ है,यह हम लोगों को अभी तक मालूम नहीं है । साधारणतः कल्पसूत्र पाठ के अवसान में जैनियों ने इस काव्य की आवृत्ति की है । राजा कालक किस कारण से और किन भावों से जैन धर्म में दीक्षित हुए हैं इसका विवरण इस काव्य में है । इस काव्य को छोड़कर और भी बहुत काव्य राजा कालक के विषय पर रचित हुए है । इस तरह कथानक साहित्य,कथाकोष साहित्य नाम में भी विशेष भाव में परिचित है । हरिसेनाचार्य (९३१/३२ A.D) वृहत् कथाकोष (संस्कृत में),श्री चंद्र का (९४१/९७ A.D) कथाकोष अपभ्रंश में,दशम शताब्दी में भद्रेश्वर का प्राकृत भाषा में लिखा हुआ कथावली और रामशेखर का प्रबन्धकोष इस प्रसंग में बहुत उल्लेखनीय है । सोमचंद्र का (१४४८ A.D) कथामहोदधि संस्कृत और प्राकृत में १५७ आख्यायिक युक्त है। हेमविजयगणी (१७०० A.D) कथारत्नाकर में २५८ आख्यायिका हैं । यह ग्रन्थ मूलतः संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है,किन्तु फिर भी इसमें महाराष्ट्री, अपभ्रंश,प्राचीन हिन्दी और गुजराती भाषा का निदर्शन मिलता है । इसके अलावा और भी बहुत कथानक ग्रन्थ हैं जिसमें अपूर्व और अद्भुत आख्यायिका का समावेश है। इसमें वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि