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________________ मियापुत्तचरियं १३४ १३. भगवान् की आज्ञा को प्राप्त कर गौतम स्वामी राजमहल में आये। उनको देखकर रानी ने भक्ति से विधिपूर्वक वंदना की। १४. उसने कहा - आज दिन धन्य है जो आपका दर्शन हुआ है । भाग्य के बिना संसार में साधुओं के दर्शन नहीं होता। १५. मेरे हाथ से भिक्षा ग्रहण करके मुझे दान का लाभ दें । गृहस्थ सब कुछ कर सकता है किंतु दान का लाभ मुनि के बिना नहीं मिलता। १६. रानी की इस वाणी को सुनकर मुनि गौतम ने कहा - मैं भिक्षा लेने के लिये नहीं आया हूं । मेरे आने का दूसरा हेतु है। १७. रानी ने साश्चर्य पूछा - आपका अन्य क्या हेतु है? तब मुनि गौतम ने कहा - मैं तुम्हारे पुत्र को देखने के लिए आया हूं। १८. मुनि गौतम के वचन सुनकर निपुण रानी घर के अंदर गई और मृगापुत्र के बाद उत्पन्न हुए दो पुत्रों को वहां लाई। १९. उसने कहा- ये मेरे पुत्र है, आप इन्हें अभीअच्छी तरह से देखें । उनको देखकर मुनि गौतम ने रानी को यह कहा २०-२१-२२. रानी ! तुम्हारा ज्येष्ठ पुत्र जो जन्मांध और जन्मांधरूप है, भूमिगृह में रखकर जिसका तुम गुप्तरूप से पालन कर रही है, उस पुत्र को देखने के लिए मैं यहां आया हूं । तुम्हारे इन पुत्रों को देखने के लिए नहीं आया हूं । मुनि गौतम की वाणी सुनकर रानी ने विस्मित होकर पूछा - इस संसार में अभी वह कौन ज्ञानी है जिसने मेरी इस सुगुप्त बात को कहा है । आप शीघ्र स्पष्ट करें। २३. रानी की इस वाणी को सुनकर मुनि गौतम ने इस प्रकार कहा - मेरे गुरु ज्ञानी है । संसार में वे 'महावीर' नाम से प्रसिद्ध है। २४. परिषद् में एक अंधे व्यक्ति को देखकर मैंने उनको पूछा - क्या इस संसार में ऐसा कोई जन्मांघ और जन्मान्धरूप है। २५. प्रश्न सुनकर कृपालु भगवान् ने तुम्हारे पुत्र के विषय में बताया। उसे देखने का इच्छुक हो मैं उनकी आज्ञा लेकर यहां आया हूं।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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