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________________ पएसीचरियं चतुर्थ सर्ग १. सूर्याभदेव के प्रेरणाप्रद पूर्वभव को सुनकर गौतम स्वामी ने महावीर को उसका आगामी भव पूछा । ११८ भगवान् २. यह देवायु को भोगकर वहां से च्यवन कर कहां उत्पन्न होगा ? गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर भगवान् ने तब इस प्रकार कहा ३. यह देवलोक से च्यवन कर महाविदेहवास में धन-धान्यादि से परिपूर्ण तथा दास, दासी, पशु से संकुल कुल में उत्पन्न होगा । ४. जब यह गर्भ में आयेगा तब इसके माता-पिता जिनप्रज्ञप्तधर्म में रत होंगे । सद्भाग्य से ही धर्म में रति होती है । ५. . उसके जन्म के बाद माता-पिता स्वजनों को बुलाकर कहेंगे— जब यह गर्भ में आया तब हम धर्म में रत हुए । ६. अत: इस बालक का नाम 'दृढ प्रतिज्ञ' हो । सभी उसके 'दृढ प्रतिज्ञ' इस शुभ नाम को स्वीकार करेंगे। ७. उसका पालन करने के लिए माता-पिता पाँच कुशल धायमाता रखेंगे । उनके सम्यक् संरक्षण में वह शनैः शनैः बढेगा । ८. जब वह आठ वर्ष का होगा तब माता-पिता उसे पढने के लिए गुरू के पास भेजेंगे। क्योकि ज्ञान को तीसरा नेत्र कहा गया है। ९. वह गुरु के समीप बहत्तर कलाओं को पढेगा। क्योंकि विनीत व्यक्ति गुरु के पास में ज्ञान प्राप्त कर सकता है ? १०. जब वह विवाह के योग्य होगा तब माता-पिता उसका विवाह करने के लिए बहुत चेष्टा करेंगे लेकिन वह पाणिग्रहण नहीं करेगा । ११-१२. मनुष्य-जीवन अनित्य तथा दुलर्भ है, मनुष्य स्वार्थपूर्ण है, भोग दुःख देने वाले हैं ऐसा जानकर वह जीवन का सार लेने के लिए, मोक्ष-स - सुख को प्राप्त करने के लिए तथा कृत कर्मों का नाश करने के लिए दीक्षा ग्रहण करेगा 1
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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