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एसीचरियं
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१२९-१३०. राजा की इस वाणी को सुनकर केशी स्वामी ने राजा को इस प्रकार कहा- यदि तुम अपना मत नहीं छोड़ेगे तो लोहे का भार उठाने वाले मनुष्य की तरह अंत में पश्चात्ताप करोगे । केशी स्वामी की वाणी सुनकर राजा ने पूछाभंते ! उस लोह - भार को उठाने वाले व्यक्ति ने किस प्रकार पश्चात्ताप किया ?
१३१. केशी स्वामी ने कहा— चार मनुष्य धनार्जन के लिए गये। जब वे कुछ दूर गये तब उन्होंने लोहे की खान प्राप्त की ।
१३२. इच्छानुरूप लोहे को ग्रहण कर जब वे आगे गये तब तांबे की खान प्राप्त की । उसको देखकर उन्होंने यह विचार किया—
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१३३. लोहे से तांबे का बहुत मूल्य है अत: अभी उसे ग्रहण करना चाहिए । तीन व्यक्तियों ने लोहे को वहां छोड़कर उसे ले लिया। किंतु एक व्यक्ति ने नहीं
लिया ।
१३४. तांबे को लेकर जब वे कुछ दूर गये तब उन्होंने बहुमूल्यवान् चांदी की खान देखी । उसको देखकर उन्होंने सोचा
१३५. तांबे से चांदी का बहुत मूल्य है अत: अभी उसे ग्रहण करना चाहिए । तीन व्यक्तियों ने तांबे को वहीं छोड़कर उसे ले लिया किंतु एक व्यक्ति ने नहीं लिया ।
१३६. चांदी को लेकर जब वे कुछ दूर गये तब उन्होंने रत्नों की खान देखी । उसे देखकर उन्होंने विचार किया—
१३७. चांदी से रत्नों का बहुत मूल्य है अतः उसे लेना चाहिए। ऐसा सोचकर तीन व्यक्तियों ने चांदी को छोड़कर रत्न ले लिये ।
१३८. जिस व्यक्ति ने लोहा लिया था उसने तब रत्न नहीं लिये। उन तीनों ने उसे रत्न लेने के लिए कहा किंतु उसने नहीं लिया ।
१३९. वह न अपना आग्रह छोड़ता है और न हित वचन को मानता है । उसके इस आग्रह को देखकर तब इन्होंने इस प्रकार विचार किया—
१४०. हा ! भाग्यहीन व्यक्तियों की विनाश काल में बुद्धि विपरीत हो जाती है । उस समय वे दूसरों की हितकारी वाणी को भी स्वीकार नहीं करते हैं ।
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१४१. इस प्रकार विचार करके तब वे रत्न लेकर उसके साथ नगर में आकर प्रसन्नमना अपने-अपने घर चले गये ।