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चारण बोला- 'मालवनाथ महाराज विक्रमादित्य की जय हो ! कृपानाथ ! मैं चारण हूं। मेरा नाम देवकीर्ति है ।
महामंत्री भट्टमात्र ने कहा- 'आपको जो फरियाद करनी हो, वह नि:संकोच रूप से करें....मालवपति आपकी फरियाद पर अवश्य विचार करेंगे ।'
देवकीर्ति चारण ने भट्टमात्र की ओर देखते हुए कहा - 'महामंत्रीश्वर ! मैं फरियाद करने नहीं आया हूं..... किन्तु एक साहस करने की प्रेरणा देने आया हूं ।' ये शब्द सुनकर सारी सभा चकित रह गई । साहस की प्रेरणा ? महामंत्री ने प्रश्न किया- 'साहस की प्रेरणा ?'
‘हां, मंत्रीश्वर! मैं अनेक राज्यों में घूमा हूं..... अनेक राजाओं को भी देखा है ..... किन्तु बानबे लाख की जनसंख्या वाले मालव देश के अधिपति विक्रमादित्य को देखने पर लगा कि ये पुरुष जाति का महान् उपकार कर सकते हैं।'
विक्रमादित्य को भी महान् आश्चर्य हो रहा था..... देवकीर्ति की बात समझ नहीं आ रही थी। महामंत्री ने कहा - 'पुरुष जाति पर महान् उपकार करने की बात समझ में नहीं आ रही है..... यदि आप विस्तार से कहें तो इस बात पर विचार किया जा सकता है । '
'मैं आपको विस्तार से बताने के लिए ही आया हूं। दक्षिण भारत में प्रतिष्ठानपुर नामक एक बड़ा राज्य है। उसके राजराजेश्वर महाराज शालिवाहन धर्मप्रेमी, सद्गुणी और पवित्र राजा हैं। उनके सतरह वर्ष की एक कन्या है। उसका नाम है सुकुमारी । उसका रूप असामान्य है .... उसके शरीर की आभा गुलाबी है। उसके नयन गुलाबी यौवन की प्रथम रेखाओं से मनोहर दिखाई देते हैं। देखने वाला सोचता है कि उसको एकटक निहारता ही रहूं और विशेष बात यह है कि राजकुमारी सुकुमारी नृत्य और संगीत में बेजोड़ है। उसके समक्ष स्वर्ग की अप्सराओं का, देवकन्याओं का और पद्मिनी नारी का वर्णन भी फीका-फीका है। ऐसा रूप, उभरता हुआ यौवन और सप्रमाण शरीर - मैंने कहीं नहीं देखा..... मालवनाथ ! और अधिक क्या कहूं? संसार के किसी कवि के पास ऐसे शब्द नहीं हैं कि वह राजकन्या का नख-शिख-वर्णन कर सके। यह कन्या सभी दृष्टियों से उत्तम और श्रेष्ठ होने पर भी, जाति के प्रति अत्यन्त द्वेष रखती है..... कोई भी पुरुष उसके समक्ष जा नहीं सकता.... यदि भूला भटका कोई भी पुरुष उसके आवास में चला जाता है, तो तत्काल उसका वध कर दिया जाता है। अपनी प्रिय कन्या की यह वृत्ति देखकर महाराजा शालिवाहन ने उसके लिए एक अलग भवन की व्यवस्था की है, वहां कोई भी पुरुष नहीं जा सकता। कोई साहसी पुरुष राजकन्या को प्राप्त करने के लिए जाता है, तो मरकर ही बाहर निकलता है। ऐसी सुन्दर और उत्तम राजकन्या ५६ वीर विक्रमादित्य