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आदिवचन
उपन्यास अन्त:करण की प्रेरणाओं, अभिप्रेरणाओं, कल्पनाओं और जीवन के उतार-चढ़ावों का एक दस्तावेज है। उसे पढ़ने वाला कभी रोमांचित होता है तो कभी उत्सुकता के झूले में झूलता है। कभी रौद्र-वीर - करुणा और आदि रसों का रसास्वादन करता है तो कभी रोचकता के प्रवहण में चढ़कर आनन्द के समुद्र में उन्मज्जन- निमज्जन करता है । उपन्यास में सहज ही मधुरता और सरसता होती है। उसे पढ़ने से कभी ऊब का अनुभव नहीं होता। वह उपन्यास उपन्यास ही क्या, जिसको पढ़ने से मन में गुदगुदी पैदा न हो और उत्सुकता ही समाप्त हो जाए। 'आगे क्या है'- जो इस आशा को जगाता है, वास्तव में वही उपन्यास है । उपन्यास - लेखन में ऐतिहासिकता और कल्पनाशीलता - दोनों विधाओं को आधार बनाया जा सकता है।
वैद्य मोहनलाल चुन्नीलाल धामी एक प्रसिद्ध गुजराती उपन्यासकार थे। वे राजकोट (सौराष्ट्र) के निवासी थे। उन्होंने अनेक गुजराती उपन्यास लिखे। उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने जैन संस्कृति, जैन इतिहास, जैन सभ्यता और जैन घटना प्रसंगों को प्राणवान् बनाने का प्रयत्न किया । अनेक उपन्यासों में उनका एक प्रसिद्ध गुजराती उपन्यास है - 'सिद्ध वैताल' । यह तीन खंडों में प्रकाशित हुआ था ।
यह उपन्यास ऐतिहासिक पुरुष वीर विक्रमादित्य और अग्निवैताल पर आधारित है। मैंने इसका हिन्दी रूपान्तरण कर इसे 'वीर विक्रमादित्य' शीर्षक से जनता के सामने प्रस्तुत किया है।
वीर विक्रमादित्य एक ऐतिहासिक पुरुष थे। उनके नाम पर भारतवर्ष में 'विक्रम संवत्' प्रचलित हुआ। उनका शासनकाल अत्यधिक प्रतापी, प्रभावी और विस्मयकारी रहा। उनका कार्यकाल मानवी और दैविक शक्तियों का एक अद्भुत संगम था। अपने चातुर्यबल पर उन्होंने 'अग्निवैताल' को अपना मित्र बनाया। उसके आधार पर उनके अनेक चमत्कारी कार्य संपादित हुए । मालवाधिपति और अवन्तीनाथ वीर विक्रमादित्य न केवल राजनीतिकुशल थे अपितु नीतिनिष्ठ और धर्मिष्ठ भी थे। उनकी परोपकार - परायणता, न्यायप्रियता और दयालुता जगत्विश्रुत थी । वे भुजबल, सैन्यबल, बुद्धिबल और चातुर्यबल से सर्वथा सम्पन्न थे। उनका जीवन अनेक घटना-प्र -प्रसंगों से संबद्ध रहा ।