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________________ 'मैंने देखा नहीं। आपके नाम का संदेश है।' महामंत्री ने कहा। विक्रम संदेश लेकर अपने राजभवन में आ गए। वे अपने आरामगृह में आए और द्वार बन्द कर उस संदेश को पढ़ने लगे। उसमें लिखा था ‘परम पूज्य राजराजेश्वर मालवपति परमवीर विक्रमादित्य महाराज के चरणकमलों में दासानुदास सर्वहर का भक्तिभावपूर्वक प्रणाम । कृपानाथ! आपने मेरी चेतावनी के प्रति ध्यान नहीं दिया, यह मेरे लिए अत्यन्त दु:ख की बात है। महामंत्री भट्टमात्र ने बुद्धि का खेल खेला था और मैंने उनको बोधपाठ पढ़ाया है, यह आपको ज्ञात हो गया होगा। मैं पुन: आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप अपने द्वारा हुए अन्याय की स्मृति करें। आपने एक सती-साध्वी नारी के साथ जो क्रूर व्यवहार किया है, वह अक्षम्य अपराध है। आपको क्या दंड दिया जाए? आपका रक्षातंत्र कितना दुर्बल है, यह आपने मेरे कार्यों से जान ही लिया होगा। अब यदि आप मुझे पकड़ने का कोई दूसरा उपाय करेंगे, या स्वयं आप मुझे हस्तगत करने का बीड़ा उठायेंगे, तो मैं आपका सामना करने में भी क्षोभ का अनुभव नहीं करूंगा। अब मैं अन्तिम बार आपको आठ दिन का समय देता हूं। इस अवधि में आप अपने अन्याय का प्रायश्चित्त का निर्णय कर लें। नौवें दिन मैं जो घटित करूंगा, वह अत्यन्त भयंकर होगा। आप अन्तर्मन से आत्मालोचना कर अपने अन्याय को याद करें, प्रायश्चित्त करें।' आपका चरणकिंकर- 'सर्वहर' वीर विक्रम ने यह पत्र तीन बार पढ़ा । एक सती-साध्वी नारी के प्रति स्वयं ने कभी अन्याय किया हो, यह स्मृति-पथ पर आ ही नहीं रहा था...फिर सर्वहर बार-बार इस बात को क्यों दोहराता है...मैंने कभी किसी स्त्री को नहीं सताया, फिर अन्याय कैसा? वीर विक्रम अत्यन्त चिन्तामग्न हो गए। कमला, कला और लतामंजरी-तीनों रानियां खंड में आयीं। विक्रम ने तीनों को पत्र पढ़ाया। कमला रानी बोली-'स्वामीनाथ! पत्र की भाषा बहुत विनययुक्त है।' 'हां।' 'आपने क्या विचार किया है?' 'मुझे ही इस चोर का सामना करना पड़ेगा।' 'स्वामीनाथ! मुझे प्रतीत हो रहा है कि सर्वहर की बात में कुछ तथ्य अवश्य है।' 'तो क्या मेरे हाथों किसी अबला के प्रति अन्याय हुआ है?' वीर विक्रमादित्य ३८१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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