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महामंत्री ने मूंछ पर हाथ फेरा। मूंछ कटी हुई थी। फिर उन्होंने समर से कहा-'तुम जाओ और यहां की सारी बात राजराजेश्वर को निवेदित कर दो। मैं अभी आ रहा हूं।'
संदेशवाहक समरसिंह महामंत्री को नमन कर चला गया।
महामंत्री के मन में अत्यन्त वेदना उभर रही थी। उन्होंने त्रिपदी की ओर देखा, फिर वहां खड़े रक्षक की ओर देखकर कहा-'वह नौजवान अश्वारोही किस ओर गया है?'
'जो आपके साथ-साथ आया था, वह ?' 'हां।' 'वह तो यहां से कभी का चला गया।' 'किस ओर गया है?' 'संभव है राजसभा की ओर गया हो!'
महामंत्री खड़े हुए। उनकी दृष्टि गद्दी पर पड़ी बांस की नलिका पर पड़ी। उसमें एक ताड़पत्र था। महामंत्री ने उसे निकाला। उस पर लिखा था-'यह संदेश आप महामंत्री विक्रमादित्य के पास पहुंचा दें। आपका सेवक-सर्वहर।'
महामंत्री कपाल पर हाथ रखकर गद्दी पर बैठ गए और एक सेवक से बोले'जा, नाई को बुला ला।'
'जी' कहकर सेवक खंड से बाहर निकल गया।
महामंत्री चिन्तामग्न हो गए। क्या वही नौजवान चोर होगा? नहीं, नहीं। गुप्तचरों ने चोर की उम्र तीस-पैंतीस वर्ष की बताई थी और यह नौजवान सोलहअठारह वर्ष का होना चाहिए। इतनी छोटी उम्र का नौजवान इतना बुद्धिमान्!
कुछ ही समय में नाई आ गया। महामंत्री ने दूसरे ओर की मूंछ का भी मुंडन करा लिया और तैयार होकर राजसभा की ओर निकल पड़े।
वीर विक्रमादित्य, महाबलाधिकृत, महाप्रतिहार आदि एक कक्ष में बैठे थे। कमला रानी भी साथ ही थी। महामंत्री भट्टमात्र वहां पहुंचे।
वीर विक्रम बोले- 'समर ने सारी बात बता दी थी। सभी को यह विश्वास था कि चोर अवश्य ही आपके जाल में फंस जाएगा।'
'महाराज! चोर के बदले मैं ही अपने जाल में फंस गया।' कहकर महामंत्री ने आदि से अन्त तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
फिर महामंत्री ने बांस की नलिका में रखे ताड़पत्र को वीर विक्रम के हाथ में सौंपते हुए कहा-'महाराज! चोर ने आपके नाम पर यह संदेश भी दिया है?'
'इसमें क्या लिखा है ?' विक्रम ने पूछा। ३८० वीर विक्रमादित्य