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________________ उसी समय महादेवी कमलारानी का जयनाद सुनाई दिया। कुछ ही क्षणों में विक्रम की दस-बारह रानियां और पांच-सात मंत्री रथों से उतरकर मंदिर के पास आए। लोगों ने उनका सत्कार किया। वे सब मंदिर में गए। इन रानियों में रानी कमला और कलावती भी थीं, जिनकी पीठ पर कोड़े के निशान स्पष्ट दीख रहे थे। पीठ प्रहार से सूज गई थी । अवधूत दोनों हाथ जोड़कर खड़े थे। मन में तीन बार नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर उन्होंने गीर्वाण वाणी में स्तुति करते हुए पहला श्लोक उच्चरित किया'कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, भीताभयप्रदमनिन्दितमह्रिपद्मम् । संसारसागरनिमज्जदशेषजन्तु, पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥' मंदिर के भूगृह में पूर्ण शान्ति व्याप्त थी । संन्यासी के वेश में महाज्ञानी आचार्य सिद्धसेन दिवाकर एक-एक श्लोक बोलते जा रहे थे । सातवां श्लोक बोलते ही धरती के कांपने का अनुभव हुआ और आठवें श्लोक के प्रारंभ होते ही शिवलिंग कांपने लगा। आचार्य दिवाकर के नेत्र मुंदे हुए थे । वे स्तुति में संलग्न थे। सभी अवाक् होकर सुन रहे थे। ग्यारहवां श्लोक आचार्य के मुख से निकला ‘यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि हतप्रभावाः, सोपि त्वया रतिपतिः क्षपितः क्षणेन । ― विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्द्धरवाडवेन ॥' ग्यारहवां श्लोक पूरा हुआ और शिवलिंग से धुआं उठने लगा । महापुरुष स्तुति को आगे बढ़ाते ही जा रहे थे। और एक चमत्कार हुआ। शिवलिंग अचानक अदृश्य हो गया और नीचे की धरती थरथराने लगी । स्तुति की अस्खलित शब्दधारा बह रही थी। तेईसवां श्लोक प्रारंभ हुआ'श्यामं गभीरगिरमुज्ज्वलहेमरत्न, सिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुचैश्चामीकराद्रिशिरसीव नवाम्बुवाहम् ॥' और सबके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। शिवलिंग के स्थान पर भगवान् पार्श्वनाथ की श्यामल, भव्य और तेजस्वी प्रतिमा बाहर निकलने लगी । ३३६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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