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________________ फिर विक्रम वहां से विदा हो गए। जब वे राजभवन में पहुंचे तब पूर्वाकाश में उषारानी का मधुर प्रवेश अठखेलियां कर रहा था। ६०. अपराधी को सजा रात्रि के दृश्य से वीर विक्रम के हृदय में एक चिनगारी जल चुकी थी। यदि वे कलिका से वचनबद्ध नहीं होते तो रात्रि में ही पेटी से बाहर निकलकर मदनमंजरी और ज्ञानचन्द्र को वहीं मौत के घाट उतार देते। किन्तु उन्होंने असाधारण धैर्य रखा। कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के साथ खेले जाने वाले रंग-राग को देखकर स्थिर रह ही नहीं सकता। क्रोध को पी जाना सहज-सरल बात नहीं है। वीर विक्रम जैसे महान् व्यक्ति ही ऐसा कर सकते हैं। विक्रम सीधे अपने खण्ड में गए और अपने निजी सेवक रामदास को स्नान आदि की व्यवस्था करने का आदेश दिया। स्नान आदि प्रात:कर्म से निवृत्त होकर वीर विक्रम महारानी कमलावती के खण्ड में गए। महारानी कमलावती भी वहीं प्रतीक्षा कर रही थी। एक आसन पर बैठने के पश्चात् विक्रम बोले- 'कमला! कल रात्रि में जो मैंने स्त्री-चरित्र देखा, उससे मुझे असह्य परिताप हो रहा है।' 'प्राणनाथ! कल रात्रि में क्या बना था?' 'प्रिये! जो घटित घटना मैंने अपनी आंखों से देखी, उसकी स्मृति मात्र से सिहरन पैदा हो जाती है।' यह कहकर विक्रम ने मदनमंजरी और ज्ञानचन्द्र के व्यभिचार की पूरी बात बताई। यह सुनकर दोनों रानियां अवाक रह गईं। दूसरे दिन रानी कमला और कलावती के साथ मंत्रणा कर वीर विक्रम ने मंत्री ज्ञानचन्द्र को अपने निजी कक्ष में बुला भेजा। ___ मन्त्री ज्ञानचन्द्र नमन करता हुआ कक्ष में प्रविष्ट हुआ और वीर विक्रम के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा रहा। महाप्रतिहार अजय वीर विक्रम के पीछे खड़ा था। खंड में और कोई नहीं था। ज्ञानचन्द्र ने विनम्र स्वरों में कहा- 'कृपानाथ! क्या आज्ञा है?' विक्रम बोले-'तुम्हारे हाथ में नगरी की व्यवस्था का कार्य है। कल मैं नगरचर्चा के लिए गया था। वहां मैंने एक दर्दनाक घटना सुनी-उत्तम कुल की एक नारी परपुरुष के साथ व्यभिचार कर रही थी। यदि नगर में ऐसा होता है तो यह अध:पतन का सूचक है। व्यभिचार के लिए नगर में अनेक वेश्यागृह हैं, फिर भी यदि गृहस्थ के घर में ऐसा होता है तो यह निन्दनीय कार्य है। अब बताओ, न्याय की दृष्टि से हमें क्या करना चाहिए?' ३२६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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