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________________ को हथेली पर लेकर आना। यदि किसी को ज्ञात हो जाए तो उसी क्षण मस्तक धड़ से अलग हो जाए।' 'भयभीत रहना प्रेमियों को शोभा नहीं देता। अच्छा चलो, पहले मैं तुम्हें अपने हाथों से नहलाती हूं। फिर हम साथ बैठकर भोजन करेंगे।' 'अरे, क्या तुमने अभी तक भोजन नहीं किया?' 'कैसे करती? मैं अधीर होकर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी।' कहकर मदनमंजरी ने मंत्री ज्ञानचन्द्र का हाथ पकड़ा और शयनकक्ष में स्थित स्नानगृह में ले गई। वीर विक्रम अवाक् बनकर अत्यन्त आश्चर्यचकित नयनों से पेटी केछिद्रों से जितना दिख पा रहा था, उसे देखते रहे। लगभग एकाध घटिका के पश्चात् ज्ञानचन्द्र और मदनमंजरी- दोनों स्नानगृह से बाहर निकले। विक्रम ने देखा-दोनों ने स्नान कर लिया है। मंजरी बोली-'तुम यहां बैठो, मैं वस्त्र बदलकर आती हूं।' 'प्रिये ! इन भीगे वस्त्रों में तुम्हारी कंचनवर्णी काया अत्यन्त रमणीय लगती है।' ___ 'फिर भी....' कहकर मंजरी शयनगृह से उसके भीतर वाले वस्त्रकक्ष में चली गईं शयनकक्ष का मुख्यद्वार भीतर से बन्द था। ज्ञानचन्द्र शय्या पर बैठे थे। विक्रम ने देखा, ज्ञानचन्द्र की उम्र लगभग चालीस वर्ष की है। इसका चेहरा भी आकर्षक नहीं है। मदनमंजरी और ज्ञानचन्द्र यदि पास-पास खड़े रहें तो भी शोभित नहीं हो सकते। ऐसे सामान्य मनुष्य पर मेरी नवयौवना पत्नी कैसे मुग्ध हो गई? __इतने में ही मदनमंजरी उत्तम वस्त्रों को धारण कर हाथ में भोजन का थाल लेकर आ गई। दोनों फर्श पर बैठे और एक-दूसरे के मुंह में कवल देते हुए प्रेम और उल्लास से भोजन करने लगे। _दोनों की बातें सुनकर विक्रम का क्रोध बढ़ रहा था, किन्तु तत्काल उन्हें कलिका की बात का स्मरण हो आया और उन्होंने क्रोध को पी लिया। भोजन करने के पश्चात् दोनों ने मुखवास लिया। मदनमंजरी बोली-'प्रिय! इस प्रकार तुम पन्द्रह-पन्द्रह दिनों में एक बार आते हो, यह उचित नहीं है। तुम प्रतिदिन रात को आया करो।' ३२२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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