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________________ उमादे ने विक्रम की ओर देखा । दो क्षण देखकर बोली- 'लाल रंग के फूलों की माला..... ľ किन्तु इन दो क्षणों के दृष्टिपात में उमादे के हृदय में एक कंपन हुआ । यह तो अति सुंदर, स्वस्थ और प्रियदर्शन नौजवान है। ऐसा सुन्दर नौजवान घर के आंगन में आया है। इसे मैंने पूर्ण दृष्टि से आज तक नहीं देखा। अब क्या हो ? उमास्वामी को नमन कर भीतर चली गई । और नित्यक्रम के अनुसार रात के दूसरे प्रहर में उमादे वृक्ष पर बैठकर अपने प्रेमी से मिलने चली गई । विक्रम और पंडितजी ने उसका आकाशगमन देखा । वृक्ष के अदृश्य होने पर पंडितजी बोले - 'वल्लभ ! कल की योजना के पूर्व ही इस दुष्टा का अन्त कर दें तो? मैं इस दुष्टा का कार्यकलाप देख नहीं सकता ।' 'गुरुदेव ! स्त्री- - हत्या का पाप क्यों लिया जाए ? पापी को अपने पाप में ही तड़पना पड़ता है । हमारी योजना बहुत उत्तम है ।' 'अरे वल्लभ ! हम पलायन कर जाएंगे कहां ? यह अपनी नीच विद्या का प्रयोग कर हमें हैरान करेगी । ' 'गुरुदेव ! आप चिन्ता न करें। मैंने देखा है, इस गांव की नदी में छोटे-छोटे वाहन चलते हैं । मैं एक वाहन का इन्तजाम कर दूंगा और हम सब उसमें बैठकर दूर चले जाएंगे।' फिर वृक्ष के आगमन की प्रतीक्षा न कर वे सीधे अपनी-अपनी शय्या पर जाकर सो गए। चतुर्दशी की संध्या । वीर विक्रम कणेर के फूलों की छियासठ मालाएं लेकर आ गया। उसने दो वाहन भी नक्की कर दिए और मध्यरात्रि के पश्चात् चलना है, यह भी वाहन चालकों को बता दिया। मात्र दो-दो रौप्य मुद्राओं का किराया होने पर भी विक्रम ने उनको एक-एक स्वर्णमुद्रा दी, इसलिए वे बहुत हर्षित हो गए। उमादे आज प्रात:काल से ही कार्य में व्यस्त थी । मध्याह्नकाल तक उसने उत्तम प्रकार के द्रव्यों से उत्तम मोदक तैयार कर लिये थे । उसने फिर भवन के आंगन को साफ कर चौंसठ वर्तुल तैयार किए और बीच में एक बड़ा वर्तुल बनाया - चौंसठ विद्यार्थियों के लिए तथा अपने पति के लिए। एक ओर उसने अपना आसन बिछाया और उसके सामने एक पट्ट पर उड़द, धूप, दीप आदि रखे। आज उमादे के हर्ष का कोई पार नहीं था। एक साथ पैंसठ व्यक्तियों की बलि देकर वह अपनी साधना पूरी कर रही थी। वह अपने यौवन को रसमय बनाने वीर विक्रमादित्य २६१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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