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________________ ऊंट उसी गति से भागा जा रहा था, मानो कि उसे थकान ही न आ रही हो। उषा का प्रकाश पृथ्वी पर फैलने लगा। विक्रम ने देखा, एक नदी है और दूसरे किनारे पर कोई सुन्दर नगरी बसी हुई है। विक्रम ने कहा-'देवी लक्ष्मीपुर आ गया है।' लक्ष्मी ने नगरी की ओर देखकर कहा-'नगरी सुन्दर लगती है।' 'अरे! यह नगरी भी तो तुम्हारे ही नाम पर है। तुम सुन्दर हो तो नगरी सुन्दर क्यों न हो? अच्छा, हमें ऊंट को धन्यवाद देना चाहिए....इसने बहुत बड़ा मार्ग तय कर लिया।' ___ नदी आ गई....विक्रम ने ऊंट को नदी में उतारा, नदी स्वच्छ थी। वह गहरी नहीं थी। सामने एक आम्रवाटिका भी थी। ऊंट ने नदी को तैरकर किनारा पा लिया। दोनों ऊंट से नीचे उतरे और वृक्ष के एक झुरमुट में जा विश्राम करने के लिए बैठे। प्रात:कार्य से निवृत्त होकर लक्ष्मीवती ने नये वस्त्र पहने। उन वस्त्रों में वह बहुत सुन्दर लग रही थी। विक्रम ने कहा- 'देवी! यह स्थान अभय है, निर्बाध है। मैं नगर में जाकर भोजन सामग्री ले आता हूं। यदि स्थान मिल जाएगा तो हम नगरी में चले जाएंगे।' ___ मुस्कराते हुए लक्ष्मी ने विक्रम की बात स्वीकार करते हुए कहा-'किन्तु आप अधिक विलम्ब न करें।' 'तुम निश्चिन्त रहना।' कहकर विक्रम अपनी थैली लेकर नगर की ओर चले। थैली में स्वर्ण मुद्राएं, अदृश्यकरण गुटिका और एक गुप्त शस्त्र भी था। विक्रम को गए दो घटिका बीत गईं। लक्ष्मीवती के मन में चिन्ता होने लगी, वह बार-बार खड़ी होकर नगरी की ओर देखती, पर स्वामी को आते हुए न देखकर निराश होकर बैठ जाती। किन्तु सुख का स्वप्न साकार हो, उससे पहले अनेक घटनाएं घटित हो जाती हैं। आज प्रात:काल ही नदी के किनारे वाले आम्रवन में लक्ष्मीपुर नगर की प्रख्यात वेश्या रूपश्री आयी हुई थी। उसने इन दोनों-विक्रम और लक्ष्मी-को देखा और जान लिया कि ये अपरिचित व्यक्ति हैं। वह लुक-छिपकर इनकी पास वाली झाड़ी में आकर बैठ गई। उसने सारी बात जान ली और जब विक्रम भोजन लाने नगरी की ओर गए तब उसके मन में एक लोभ जागा कि यदि यह सुन्दरी मेरे भवन में आ जाए तो वहां धन की वर्षा होने लग जाएगी। सेठ, सुभट और राजपुरुष इस नारी के यौवन का भोग करने के लिए मेरे चरण चूमने लग जाएंगे। २६६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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