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प्राप्त जुआरी पति!, पर अब क्या हो? कर्म के अनुसार जो प्राप्त हुआ है, उसे ही वरदान मान लेना श्रेष्ठ है। मैंने जिस पुरुष का स्पर्श कर लिया है, वह चाहे जुआरी हो या मद्यपायी हो या राजा, वह मेरे लिए स्वामी है...मेरे शून्य हृदय में अब कोई दूसरा प्रतिष्ठित नहीं हो सकता....मैं भले ही राजकन्या रही, पर हूं मैं एक आर्य नारी और आर्य नारी का मंगल कर्त्तव्य है कि वह अपने पति को परमेश्वर माने। मुझे कर्त्तव्य-विमुख नहीं होना है।
___ इन विचारों के साथ-साथ उसके मन में एक प्रश्न भी उभर रहा था कि मेरे माता-पिता की क्या दशा हुई होगी? मेरी प्यारी मां बिलख-बिलखकर आंसू बहा रही होगी और महान् पिताश्री ने मेरी खोज में चारों ओर दूतों को भेजा होगा और भीमकुमार का क्या हुआ होगा? क्या वह अपने माता-पिता के वैर का बदला लेने को उत्सुक है? इस जुआरी पति ने जो कहा कि भीमकुमार अत्यन्त कुरूप और बदसूरत है, क्या यह सच है ? हे भगवन् ! एक रात में क्या-क्या घटित हो गया?
रात का दूसरा प्रहर कभी का प्रारंभ हो चुका था। राजकन्या की आंखों में नींद उतरने लगी.....उसने देखा, जुआरी पति गहरी नींद में खर्राटे ले रहा है, इसलिए वह भी एक ओर पड़ी चादर पर सो गई। ज्यों ही वह नींद की गोद में जा रही थी कि उसके कानों से सिंह की भयंकर दहाड़ टकरायी। वह हड़बड़ाकर उठी। भयभीत दृष्टि से उसने जुआरी की ओर देखा। वीर विक्रम गहरी नींद में था। राजकन्या ने उसे जगाते हुए कहा-'यहां कोई सिंह आया लगता है।'
तत्काल विक्रम उठा। अंधकार के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दिया। इतने में ही सिंह पुन: दहाड़ा। विक्रम ने धनुष हाथ में ले एक बाण सिंह-गर्जना की दिशा में छोड़ा।
राजकन्या डर से कांप रही थी....पर विक्रम तत्काल सो गया। राजकन्या भी विक्रम के पैरों पर सिर टिकाकर सो गई।
दो घटिका बीती होगी कि एक बाघ की आवाज आयी। राजकन्या जागी और जुआरी पति को जगाया।
विक्रम ने धनुष पर दूसरा बाण चढ़ाया। बाघ ने गर्जना की और विक्रम ने उस ओर बाण छोड़ा।
फिर विक्रम तत्काल सो गया। जुआरी की इस नींद पर राजकन्या को आश्चर्य हुआ....यह कैसे हृदय का पुरुष है? न इसमें कोई भय है और न कोई आसक्ति!
कुछ क्षण पूर्ण नीरवता में बीते....राजकन्या भी अपने स्थान पर सो गई।
पूर्वाकाश में उषा का सिंदूर चमकने लगा...पक्षी चहचहाहट करने लगे.... विक्रम जागा....उसने देखा, राजकन्या आराम से सो रही है.... उसने सोचा, अब
२६२ वीर विक्रमादित्य