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वस्त्र अदृश्य रह नहीं सकते और केवल वस्त्रों वाले धड़ को देखकर दासदासी घबराकर चिल्ला उठे तो बहुत कठिनाई हो सकती है। यह सोचकर विक्रम ने अपने सारे वस्त्र उतारकर एक कुंज में छिपा दिए। फिर वे निर्भय होकर राजभवन में प्रविष्ट हुए।
राजभवन में हलचल थी, किन्तु कोई उन्हें देख नहीं सकता था....वे एकएक कर मंजिल चढ़ने लगे। चौथी मंजिल पर उन्होंने देखा कि बत्तीस वर्ष की एक सुन्दरी झूले पर बैठी हुई झूल रही है। उन्हें प्रतीत हुआ कि यह राजपरिवार के रहने की मंजिल होनी चाहिए।
झूला मन्द गति से डोल रहा था। ऊपर की सोपान श्रेणी से एक नौजवान परिचारिका नीचे उतर रही थी। उस परिचारिका को देखते ही वह सुन्दरी बोली'सुभद्रा ! लक्ष्मी क्या कर रही है?'
____ 'महादेवी! राजकुमारी जी अपनी एक सखी के साथ मनोरंजन कर रही है....अभी वे आपके पास आएंगी।' नमन कर सुभद्रा ने कहा। .
वीर विक्रम एक कोने में खड़े रह गए। राजकुमारी के नीचे आ जाने पर वे ऊपर जाना चाहते थे।
कुछ ही क्षणों के पश्चात् राजकुमारी नीचे आ गई....उसे देखकर सुन्दरी ने प्रसन्नता व्यक्त की।
राजकुमारी लक्ष्मीवती नमन कर उसके पास बैठ गई। उसने पूछा-'मां! क्या आज्ञा है ?'
'लक्ष्मी! तुम्हारे पिताश्री ने आज भी मुझसे प्रश्न किया था....' हंसती हुई लक्ष्मीवती बोली-'मां! मैं एक-दो दिन में ही निर्णय कर लंगी।' 'त्रिविष्टप के युवराज का चित्र तुम्हें पसन्द नहीं आया?'
'मां! वे बहुत स्थूल हैं और उनकी आंख बहुत छोटी है। उनका मुंह तो मानो पिचक गया हो, ऐसा लगता है।'
'और भी अनेक चित्रांकन हैं.....मन को उपशान्त कर किसी राजकुमार को पसन्द कर लो....यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकती हूं।'
'तब तो बहुत अच्छा है....परसों मध्याह्न के समय आप मेरे कक्ष में पधारें।' 'अरे, तुम अपनी सखियों के मनोरंजन में भूल मत जाना।' 'नहीं, मां! पिताश्री का मुझ पर कितना स्नेह है, कितनी चिन्ता है।'
'तुम मेरी आदर्श और गुणवती कन्या हो'-कहकर माता ने लक्ष्मी का मस्तक चूमा।
उसी समय महाप्रतिहार की ध्वनि सुनाई दी। महाराज के पधारने की यह सूचना दी।
२५२ वीर विक्रमादित्य