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________________ विक्रम ने जलाशय की ओर देखा, स्वच्छ स्फटिक-सा जल। आस-पास का वातावरण शीतल और लुभावना। उनका मन नींद लेने को हुआ, क्योंकि सात दिन तक वे पूरी नींद कभी नहीं ले पाये थे। वे थैली को सिरहाने रखकर निद्रादेवी की गोद में चले गए। जब वे जागृत हुए, तब दिवस का पहला प्रहर बीतने वाला था। विक्रम तत्काल खड़े हुए। उन्होंने सोचा- 'ओह! इतना दिन चढ़ गया....वातावरण अत्यन्त सुन्दर और मधुर है....स्थान श्रमापहारी है। यह सोचकर विक्रम प्रात:कार्य आदि से निवृत्त हुए। वीर विक्रम अपना सामान लेकर ताम्रलिप्ति नगरी की ओर चल पड़े। ४८. विक्रम की उदारता ताम्रलिप्ति नगरी की गगनचुम्बी अट्टालिकाएं स्पष्ट दीखने लगीं। उन्हें देखकर विक्रम ने सोचा-क्या सभी अट्टालिकाएं अभी-अभी निर्मित हुई हैं? क्या समूची नगरी का नवनिर्माण हुआ है? यह नगरी तो बहुत प्राचीन है। प्राचीन कथाओं में भी इसका उल्लेख आता है। इतनी स्वच्छ और निर्मल अट्टालिकाएं! विक्रम आश्चर्य से भर गए। इन विचारों में उलझे हुए विक्रम नगरी की ओर जा रहे थे। नगरी से कुछ दूर एक नदी आयी। अरे, यह क्या? नदी के उस तीर पर हजारों नर-नारी क्या कर रहे हैं ? क्या कोई उत्सव है ? चारों ओर धुआं उठ रहा था, मानो कि स्थानस्थान पर रसोई बन रही हो। क्या किसी सार्थवाह का पड़ाव है ? अरे! पड़ाव तो इतना विशाल नहीं हो सकता। देखू, वहां क्या हो रहा है। किन्तु वहां पहुंचूं कैसे?विक्रम सोच रहे थे। _ विक्रम उस किनारे की ओर आगे बढ़े। थोड़ी दूर पर एक घाट आया। वहां एक नौका में बैठकर वे उस किनारे पहंचे। नौका का भाड़ा था मात्र एक कपर्दिका। किन्तु विक्रम के पास केवल स्वर्णऔर रौप्य मुद्राएं थीं। उन्होंने एक रौप्य मुद्रा नाविक को दी। नाविक विक्रम की ओर विस्मय से देखने लगा। ___ नौका से उतरकर विक्रम आगे चले। थोड़ी दूरी पर एक वृद्ध पुरुष मिला। विक्रम ने उसे नमस्कार कर कहा- 'भाई! यहां इतने पुरुष एकत्रित होकर क्या कर रहे हैं?' 'आप कोई परदेशी लगते हैं, ये स्त्री-पुरुष इसी नगरी के हैं।' 'तब क्या कोई उत्सव है?' 'नहीं, हमारे यहां रोज ऐसा उत्सव होता रहता है। हमारे महाराजा ने अभी तीन वर्ष पूर्व ही नगरी का नवनिर्माण कराया है। नगरी का कोई भी मकान रसोई के २४२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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