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________________ नायक नागदमनी को लेकर राजभवन में पहुंच गया। महाराजा प्रतीक्षा कर ही रहे थे। महाप्रतिहार अजय नागदमनी को लेकर विक्रम के समक्ष गया और बोला'कृपानाथ! देवदमनी के बदले उसकी मां नागदमनी उपस्थित है।' नागदमनी ने महाराजा विक्रम को नमस्कार किया। विक्रम बोले-'आओ बहन, आओ। तुम अपनी बेटी को साथ नहीं लायी?' महाप्रतिहार खंड के बाहर चला गया। नागदमनी ने कहा-'कृपानाथ! मेरी बेटी अभी बच्ची है, इसलिए यहां आने में उसे संकोच होता है। आपका जो काम है, वह आप मुझे कहें।' विक्रम ने नागदमनी की ओर देखकर कहा-'आज प्रात: मैं तुम्हारे घर के पास से निकला, उस समय तुम्हारी बेटी रास्ते को बुहार रही थी। उसने पंचदंड वाले छत्र की बात कही थी। मैं यह जानना चाहता हूं कि वह छत्र क्या है ? वह कैसा है?' नागदमनी बोली-'कृपानाथ! इस छत्र की जिज्ञासा न करें, यही उचित है।' विक्रम ने कहा-'नागदमनी! मैं परिणाम की चिन्ता नहीं करता। भाग्य को कोई अन्यथा नहीं कर सकता। मुझे उस छत्र की बात अवश्य जाननी है।' नागदमनी चिन्ता में पड़ गई। कुछ समय मौन रहकर वह बोली-'महाराज! इस छत्र की पूरी जानकारी मेरी बेटी को है, किन्तु वह बता नहीं सकती। यदि आपको यह जानकारी करनी है तो आपको एक जुआ खेलना पड़ेगा।' 'जुआ? मैं समझा नहीं।' ___ "मैं आपको समझाती हूं। आपको अपने उद्यान में एक द्यूतमंडप की रचना करनी होगी। फिर आपको मेरी कन्या देवदमनी के साथ शतरंज खेलना होगा। इस खेल में यदि मेरी कन्या लगातार तीन बार पराजित हो जाएगी तो आप विजयी होंगे और तब आपको उसके साथ विवाह करना होगा। फिर वह आपको उस छत्र का पूरा विवरण बताएगी। उस शतरंज की बाजी के समय निरीक्षक के रूप में मैं रहूंगी। हम तीनों के अतिरिक्त वहां कोई नहीं रहेगा।' विक्रम ने पूछा- 'शतरंज की बाजी मैं हार गया तो?' नागदमनी ने हंसकर कहा- 'कृपानाथ! आपकी हार बेटी के लिए गौरव बन जाएगी। आप पराजित होकर कुछ खोएंगे नहीं, केवल छत्र के विषय का विवरण आप नहीं जान पाएंगे।' विक्रम विचारमग्न हो गए। उन्होंने सोचा, मैं शतरंज खेलेने में निपुण हूं। कमला, कलावती और लीलावती-तीनों रानियां शतरंज खेलने में अति चतुर २१२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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