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विक्रम गुफा के भीतर गहरी नींद में सो रहे थे और एक कोने में भीलनी पड़ी थी । उसे नींद नहीं आ रही थी। जब बानवे लाख प्रजा के स्वामी सामने सो रहे हों तो भला नींद कैसे आए और जब वे जागें और कुछ मांगें, उस समय यदि स्वयं सो जाए तो अतिथि को कितना कष्ट हो, यह सोचकर वह जागती हुई सो रही थी।
बहुत बार ऐसा होता है कि मनुष्य जागृत रहने का निर्णय करता है, तब ही पृथ्वी की सारी नींद उसे आ घेरती है। भीलनी दो घटिका पर्यन्त जागती रही, फिर अचानक उसकी आंखें लग गईं और वह निद्राधीन हो गई ।
रात का तीसरा प्रहर चल रहा था। बाहर पहरे पर बैठे भील की आंखों में नींद ने डेरा डाला और अचानक उसने बाघ की हुंकार सुनी। समग्र वन- प्रदेश को प्रकंपित कर देने वाली उस हुंकार को सुनकर भील खड़ा हो गया और आस-पास देखने लगा । इतने में ही मृत्यु का रूप धारण कर बाघ भील पर झपटा। भील एक चीख के साथ भूमि पर लुढ़क गया। प्रयत्न कर वह उठा और बाघ से जूझने लगा । संयोगवश भील की लाठी एक ओर गिर गई थी। बाघ भील पर उछला और उसकी छाती को चीर डाला। भील के मुंह से एक करुण चीख निकली और वह सदा के लिए शान्त हो गया।
यह चीख और बाघ का हुंकार सुनकर वीर विक्रम खाट से उठ खड़े हुए। भीलनी भी उठ गई । विक्रम ने कहा- 'बहन, जल्दी द्वार खोल । बाहर कुछ घटना घटी है।'
भीलनी ने प्रकाश के लिए जलती हुई लकड़ी को हाथ में लिया और वह द्वार की ओर जाते हुए बोली- 'महाराज ! गुफा के द्वार के आड़े पत्थर रखा हुआ है। मेरे स्वामी के सिवाय कोई उसे हटा नहीं सकता ।'
विक्रम तत्काल आगे बढ़े, पत्थर पर एक लात मारी । पत्थर वहां से खिसक T गया। पत्थर के खिसकने की आवाज सुनकर भील का रक्त चूसने में तल्लीन बाघ भाग गया। विक्रम और भीलनी - दोनों बाहर आए । पश्चिम रात्रि के चांद की चांदनी फैल चुकी थी। विक्रम ने देखा कि स्वयं को बचाने वाला भील मर चुका है।
भीलनी अपने पति की यह दशा देखकर रक्त से सने उसके शरीर पर गिर पड़ी । वह करुण स्वर में बोली- 'अरे मेरे स्वामी ! यह तुम्हें क्या हो गया ? अरे रे ! तुमने मेरा विचार भी नहीं किया ?' इतना कहते ही भीलनी के प्राणपखेरू भी उड़ गए।
राजा विक्रम अवाक् रहकर इस हृदयद्रावक दृश्य को देख रहे थे । उन्होंने नीचे झुककर देखा कि भीलनी का शरीर भी निर्जीव हो गया है। अब क्या करें ?
२०० वीर विक्रमादित्य