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या गद्दी नहीं थी, केवल एक छोटी-सी खाट थी। भील ने खाट बिछायी और विक्रम को वहां बिठा दिया। भील ने एक कोने में रसोई बना रही भीलनी की ओर देखकर कहा-'अरे, सुन! आज हमारे घर मालवा के नाथ अतिथि हुए हैं। जल्दी से पानी ला और रसोई कुछ अच्छी बनाना।'
भीलनी खड़ी हुई। पानी का पात्र और मिट्टी की परात लेकर विक्रम के सामने आयी। राजा ने शीतल पानी पिया। पानी पीते ही मानो सारे शरीर में प्राणसंचार हो गया। एक साथ पांच-सात गिलास पानी पी लिया। फिर भीलनी की ओर दृष्टि कर कहा- 'बहन! यहां कोई दूसरे परिवार भी रहते हैं या नहीं?'
उत्तर देते समय भीलनी शरमा गई। चूल्हे में जो लकड़ियां जल रही थीं, उनके प्रकाश में विक्रम ने देखा कि भील और भीलनी दोनों में अत्यन्त प्रेम है। भील ने कहा- 'महाराज! यहां तो केवल मैं और मेरी पत्नी-दो ही रहते हैं। किन्तु एकाध कोस के परिसर में दो-तीन परिवार और रहते हैं। इस वन में सिंह-बाघ आदि का भय रहता है, इसलिए हमें इस प्रकार की गुफा में रहना पड़ता है।'
वनवासी भील की बातों में वीर विक्रम को रस आ रहा था। वे अनेक प्रश्न पूछ रहे थे। भील उत्तर दे रहा था। भीलनी चूल्हे के पास चली गई।
___ उसने मन-ही-मन सोचा, आज हमारे आंगन में राजा आए हैं, किन्तु उनके आतिथ्य के लिए बाजरे के सिवाय कुछ है नहीं। चूल्हे पर राबड़ी पक रही है। किन्तु अब क्या हो? अभी और कुछ मिल नहीं सकता। यह सोचकर भीलनी बाजरे के रोट बनाने बैठी।
जिस व्यक्ति को पानी मांगते समय स्वर्णपात्र में दूध मिलता था और भोजन में बत्तीस प्रकार की सामग्रियां परोसी जाती थीं, छब्बीस-छब्बीस पत्नियां जिसकी सेवा में खड़ी रहती थीं, उस राजा विक्रम को आज मिट्टी के पात्र का पानी बहुत मीठा लगा था और भूख इतनी तीव्र थी कि कुछ भी सामने आए, वह उसे उदरस्थ कर लेना चाहते थे।
रोट तैयार हो गए, तब भीलनी ने संकेत से अपने पति भील को निकट बुलाकर कहा-'इस राबड़ी और रोट के अतिरिक्त घर में कुछ भी नहीं है। दूध भी अब मिल नहीं सकता।'
भील बोला-'अरे, लहसुन का मसाला है या नहीं?' 'हां, कुछ पड़ा है। कुछ सूखी हुई मिरचे भी हैं।'
'ठीक है, जो हो वह जल्दी ले आ। उस परात में राबड़ी निकाल। रोटी पत्थर के पट्ट पर रखेंगे।' यह कहकर भील विक्रम के पास गया। भीलनी ने दो पात्र राबड़ी से भरे। पत्थर के एक पट्ट पर रोट और मसाला रखा। राजा विक्रम और १६८ वीर विक्रमादित्य