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________________ आपको मध्याह्न से पूर्व मेरे पास पहुंचा देगा। आप अपने साथ दो स्वच्छ वस्त्र लेते आएं, और कुछ भी साथ न लाएं।' विक्रम बोले-'अच्छा, किन्तु मेरे रक्षक.....।' बीच में ही योगी बोला-'राजन्! आप स्वयं रक्षक हैं, वीर और साहसी हैं। दूसरी बात है कि स्वर्ण-पुरुष की आराधना-क्रिया आप और मेरे सिवाय कोई न देख सके,यह ध्यान रखना है। राजन् ! आप किसी प्रकार का भय न रखें। आपको आंच तक नहीं आएगी। आपको धैर्य रखना पड़ेगा।' विक्रम ने योगी की ओर प्रश्न-भरी दृष्टि से देखा। योगी बोला- 'वीर पुरुष! जब मैं मंत्र की आराधना करूंगा, तब नीची जाति के देव, यक्ष, प्रेत आदि मेरी साधना में विघ्न उपस्थित करने के लिए आएंगे। वे भयंकर रूप धारण कर मेरी साधना को भंग करने का प्रयत्न करेंगे। उस समय आपको पूर्ण धैर्य रखना है। मैं आपकी सुरक्षा के लिए मंत्र-सिद्ध एक वर्तुल निर्मित करूंगा। उसमें आपको खड़ा रहना होगा। वहां कोई भी दुष्ट सत्त्व आपका अहित करने में समर्थ नहीं होगा। किन्तु यदि आप डरकर उस वर्तुल की मर्यादा का उल्लंघन कर देंगे, तो वे दुष्ट सत्त्व मेरी साधना को छिन्न-भिन्न कर देंगे। इसीलिए आप-जैसे समर्थ व्यक्ति को उत्तर-साधक बनाने के प्रयोजन से यहां आया हूं।' विक्रम ने स्थिर स्वर में कहा-'योगिराज! आप निश्चिंत रहें। आपकी साधना पूर्ण होगी। जगत् की कोई भी दुष्ट शक्ति आपकी साधना को भंग नहीं कर सकेगी।' __योगिराज आशीर्वाद देकर चले गए। विक्रम राजभवन में आए। उन्होंने मन-ही-मन निश्चय कर लिया कि योगी की इस बात की चर्चा कहीं नहीं करेंगे और जब उनकी दोनों प्रियाओं ने पूछा- 'आज इतना विलम्ब कैसे हो गया?' तब विक्रम ने हंसते हुए कहा- 'एक योगी आया था। उसके साथ चर्चा करने में विलम्ब हो गया।' रात हई। विक्रम नगरचर्चा के लिए अकेले ही निकलते थे। उस समय उनके कानों में अचानक चिरपरिचित शब्द टकराया- 'महाराज! किस ओर....?' विक्रम चौके। पीछेदेखा कि अग्निवैताल हंस रहा है। विक्रम तत्काल अश्व सेनीचे उतरे और वैताल की ओर देखकर बोले-'ओह! वैताल! अचानक....।' वैताल ने गंभीर स्वरों में कहा- 'क्या करूं, महाराज! आपसे मित्रता की है, इसलिए मुझे सतत सावधान रहना होता है।' ___ 'मैं कुछ समझा नहीं।' 'महाराज! आज प्रात:काल जो योगी आपके पास आया था, वह अत्यन्त दुष्टात्मा है। आप बत्तीस लक्षण-युक्त पुरुष हैं। इसलिए वह आपकी ही आहुति १५० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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