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________________ 'कला का अपहरण?' 'हां, नाथ! उसके पलंग पर तांबे का एक छोटा-सा पत्र पड़ा है, जिस पर खोपड़ी का चिह्न है।' 'ओह!' कहकर विक्रम ने अपने दोनों हाथों से सिर दबाया। फिर वे कमला के साथ विद्याधर-कन्या कलावती के शयन-गृह में गए। देखते ही विक्रम का कलेजा कांप उठा-संसार की श्रेष्ठ सुन्दरी का पलंग सूना पड़ा था। जिस पलंग पर गुलाब के फूल जैसी प्रियतमा सोती थी, उस पलंग पर केवल एक कौशेय चादर पड़ी थी और एक ताम्र का टुकड़ा पड़ा था। उस पर खोपड़ी की आकृति कुरेदी हुई थी। विक्रम ने चारों ओर देखा-एक झरोखा खुला था। विक्रम ने सोचा, वह चोर इसी झरोखे से आया होगा, किन्तु झरोखा भूमि से बहुत ऊंचा था। वह इससे कैसे आ सकता है ? बाहर रक्षक पहरा देते ही हैं, वह चोर कलावती को लेकर किस रास्ते से गया होगा? __ स्वामी को विचारमग्न देखकर कमला बोली- 'येन-केन-प्रकारेण मेरी बहन कला को आप शीघ्र मुक्त कराएं।' 'देवी! राजलक्ष्मी का अपहरण मेरे जीवन पर भारी कलंक है। मैं अभी सबको बुलाता हूं।' ___ 'स्वामिन् ! यह बात यदि नगरी में प्रसारित होगी तो बहुत ऊहापोह होगा और श्रेष्ठियों के परिवार नगर का त्याग करने लगेंगे।' रानी ने कहा। - रानी की इस बात में विक्रम को तथ्यलगा और उन्होंने महामंत्री, नगररक्षक आदि विश्वस्त व्यक्तियों को बुलाने का निर्णय किया। दोनों वहां से बाहर आ गए। ३१. विक्रम की आराधना कोई भी बात गुप्त रह सके, यह अत्यन्त कठिन है। हां, कोई विश्वस्त व्यक्ति लम्बे समय तक बात को पचाकर रख सकता है अथवा दो अभिन्न हृदयों के बीच हुई बात एक सीमा तक गुप्त रह सकती है, किन्तु जो बात छह कानों तक पहुंच जाती है, उसके पांखें आ जाती हैं और फिर न चाहने पर भी वह अनन्त आकाश में उड़ने लगती है। ____ महारानी कमला की बात तथ्यपूर्ण थी, फिर भी महाराजा ने महामंत्री, महाप्रतिहार, नगररक्षक, महाबलाधृित, बुद्धिसागर आदि व्यक्तियों को रानी कलावती के अपहरण की बात बताई। वीर विक्रमादित्य १५१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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