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________________ इस प्रकार अनेक विचारों के उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए अवधूत विक्रमादित्य स्थंभनपुर के बाजार को देखते हुए चले जा रहे थे। अवधूत का वेश धारण करने के पश्चात् विक्रमादित्य ने अपने लिए कुछ नियम बना लियेथे-किसी के समक्ष हाथ नहीं पसारना, किसी से भिक्षा की याचना नहीं करना, किसी का दान नहीं लेना, कोई भोजन कराए तो भोजन कर लेना, अन्यथा फल-फूल खाकर रह जाना। किन्तु पुण्यवान् व्यक्ति जहां कहीं हों, पुण्य सदा उनके साथ रहते हैं। विक्रमादित्य उत्तम राजकुल के बालक थे-नवयुवक थे, निर्दोष और पवित्र थे। उनके नयन तेजस्वी, वर्ण गौर और मुख प्रभावशाली था। उनकी भुजाएं प्रचंड, काया सुदृढ़ और प्रमाणोपेत थी। उनकी दाढ़ी और मूंछ के बाल बढ़े हुए थे, फिर भी उनका राजतेज स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। स्थंभनपुर नगर में स्थंभन पार्श्वदेव का विशाल मंदिर था। वह अत्यन्त रमणीय और दर्शनीय था। वहीं कामनाथ महादेव का मंदिर भी अजोड़ गिना जाता था। अवधूत विक्रमादित्य नगर की छटा को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। बाजार में आने-जाने वाला प्रत्येक व्यक्ति अवधूत के तेजस्वी वदन को देखकर श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता। देखने वाला यही सोचता कि किसी दु:ख से दु:खी होकर इस नवयुवक ने संन्यास धारण किया है। क्या इसके मां-बाप मर गए? क्या इसको सौतेली मां का संताप था? क्या यह बचपन से ही वैरागी बन गया ? एक दूकान पर एक मालदार सार्थवाह माल की खरीदी कर रहा था। उसके साथ वाले दो आदमियों ने तेजमूर्ति अवधूत की ओर देखा और बोले- 'सेठजी! यह कोई बालयोगी है। कितना इसका तेज है?' 'कहां है?' सेठ ने पूछा। 'देखो, सामने से आ रहे हैं।' सेठ ने माल का सौदा बन्द कर दो क्षणों के लिए अवधूत की ओर देखाभव्य कपाल, प्रचंड भुजाएं, मांसल देह, तेजस्वी नयन। अवधूत विक्रमादित्य उस दूकान के पास से गुजर गए-सार्थवाह आंखें फाड़-फाड़कर उन्हें देख रहा था। उसने व्यापारी से कहा- 'तुम माल तोलो। मैं अभी आ रहा हं।' यह कहकर वह सेठ अवधूत के पीछे चल पड़ा। विक्रमादित्य धीरे-धीरे चल रहे थे। सार्थवाह उनके पास पहुंचा और हाथ जोड़कर बोला- 'महात्मन् ! मेरा प्रणाम स्वीकार हो।' विक्रमादित्य ने केवल हाथ ऊंचा किया। वीर विक्रमादित्य ७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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