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उसने कहा- 'अवश्य ही मिल जाएंगे। एक स्वर्णमुद्रा की कीमत से श्रेष्ठ अश्व खरीदा जा सकता है। आप कहां के निवासी हैं ?'
'मालवदेश का ।
'आप इधर से कहां जाना चाहते हैं ?'
'प्रतिष्ठानपुर की ओर ।'
'क्या आप अकेले ही हैं ?'
'नहीं, मेरा एक साथी भी है। वह अभी बाहर गया है। कुछ ही समय में आ जाएगा।' विक्रमादित्य ने कहा ।
वृद्ध मुनीम कुछ आगे पूछे, इतने में ही अग्निवैताल पांथशाला में आ पहुंचा उसने अपना सारा रूप ही बदल लिया था । यदि वह विक्रम को प्रणाम नहीं करता T तो विक्रम भी उसे पहचान नहीं पाते।
दोनों मित्र पांथशाला के एक कमरे में गए । अग्निवैताल ने महादेवी के कुशल- समाचार कहे तथा अवंती नगरी और राज्य-व्यवस्था की सारी बात बताई । फिर दोनों मित्र अपना-अपना सामान वहीं पांथशाला में रखकर गांव की ओर चल पड़े।
२४. वरमाला
विक्रमादित्य और अग्निवैताल ने दो अश्व तथा कलाकार के लिए उपयुक्त वस्त्र खरीदे और दो दिन उस छोटे से गांव में रुके। तीसरे दिन वे दोनों दक्षिण भारत के कुछेक दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए चल पड़े, क्योंकि वे दस दिन बाद प्रतिष्ठानपुर पहुंचना चाहते थे ।
दोनों मित्र घूमते-घूमते विजयपट्टन आए। वहां से उन्होंने महार्घवीणा और एक मृदंग खरीदा। फिर दस दिन इधर-उधर घूम-फिरकर वे प्रतिष्ठानपुर पहुंचे और वहां की श्रेष्ठ पांथशाला में जा ठहरे।
दस-बारह दिनों के इस प्रवास में विक्रमादित्य को यह ज्ञात हो गया कि राजकन्या के विवाह की शर्त की चर्चा चारों ओर फैल गई है और दो-चार कलाकार प्रतिष्ठानपुर पहुंच भी गए हैं।
राजकुमारी के साथ विवाह करने की तीव्र इच्छा से मात्र एक ही कलाकार विजपट्टन से आया था। शेष कुतूहलवश आए थे ।
विजयपट्टन से आने वाले कलाकार का नाम था जयकेसरी और वह पचीस वर्ष का युवक था । वह जाति से क्षत्रिय और श्रेष्ठ गायक था। उसने मालकोश की पूर्व साधना की थी और पूरे दक्षिण भारत में मालकोश राग को प्रस्तुत करने में
वीर विक्रमादित्य ११६