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________________ विक्रमा हंस पड़ी। उसने राजकुमारी के कंधों पर हाथ रखकर कहा'राजकुमारी जी ! अब ऐसी द्वेष भावना शोभा नहीं देती।' 'यह द्वेष नहीं - तुम्हारी बात सुनने के पश्चात् मैंने मन-ही-मन यह निर्णय लिया है कि सुयोग्य कलाकार को ही प्रियतम के रूप में स्वीकार करना है। किन्तु एक प्रश्न बार-बार मेरे मन में व्यथा पैदा कर रहा है कि ऐसा कलाकार कहां से मिले ?' ‘राजकुमारीजी! आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मैं एक बता देती हूं।' 'क्या ?' 'प्रत्येक राजा या राजकुमार दुष्ट नहीं होता।' - 'कुछ भी हो ! यदि मुझे सुयोग्य कलाकार नहीं मिला तो जीवन भर मैं कुंआरी रह जाऊंगी, पर किसी राजा या राजकुमार से विवाह नहीं करूंगी।' विक्रमा ने राजकुमारी के हाथों को दबाते हुए कहा- 'भाग्य का बल अचिन्त्य होता है - आप जैसा कलाकार चाहती हैं, वैसा आपको अवश्य मिलेगा ।' 'तुम मुझे आश्वासन दे रही हो - मैं एक राजकन्या हूं, ऐसे कलाकार की टोह में कहां भटकती फिरूंगी ?' 'कलाकार आपको खोजते खोजते स्वयं आएगा। महाराज के समक्ष एक योजना प्रस्तुत करें।' 'कैसी योजना ?' 'महाराज स्वयं यह प्रसारित करें कि क्षत्रिय अथवा ब्राह्मण कोई भी कलाकार राजसभा में राग - मंजरी अथवा मालकोश राग की आराधना कर उसका प्रभाव प्रदर्शित करेगा, वह राजकन्या का वरण कर सकेगा।' 'तुम्हें ही यह योजना महाराज को बतानी होगी ।' 'राजकुमारीजी ! आप निश्चिंत रहें। आपका यह प्रश्न मेरा प्रश्न बन चुका है । मेरा यहां अधिक रुकना संभव नहीं है। फिर भी मैं आपके लिए कुछ दिन यहीं रुकूंगी और महाराज को सारी योजना समझाऊंगी । ' 'नहीं, सखी! अब तुम यहां से नहीं जा सकोगी ।' ‘राजकुमारीजी ! आपके विवाह के अवसर पर मैं अवश्य ही उपस्थित हो जाऊंगी। किन्तु मेरी मां के लिए मुझे अवश्य जाना होगा।' राजकुमारी ने विक्रमा के दोनों हाथ पकड़ लिये । विक्रमा मौन रही । दूसरे दिन विक्रमा ने महाराज और महारानी को राजकन्या के विवाह की योजना समझाई। महाराज ने कहा- 'देवी विक्रमा ! योजना सुन्दर है, पर रागमंजरी का गायक कलाकार दस वर्षों में भी न मिला तो.... ?' वीर विक्रमादित्य ११३
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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