________________
सबका आश्चर्य अब शान्त हो गया होगा। अब मैं आपके समक्ष मेघराग की आराधना करूंगी। इस राग के प्रभाव से इस ग्रीष्मऋतु में वर्षा होगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।'
इतना कहकर विक्रमा बैठ गई और राजकन्या की ओर देखकर बोली'मेरे से कोई अविनय तो नहीं हुआ?' - उत्तर में राजकुमारी के गुलाबी नेत्र पुलकित हो गए।
और संगीतसभा का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।
सबसे पहले दोनों वाद्यमंडलियों ने देवी सरस्वती की प्रार्थना प्रस्तुत की।
__ कामलता और मदनमाला-दोनों बहनों ने गीत सहित नृत्य प्रारम्भ किया। सभी दर्शकों का मन हर्ष से लबालब भर गया।
विक्रमारूपी विक्रमादित्य ने अपने मित्र अग्निवैताल की ओर अर्थभरी दृष्टि से देखा।
अग्निवैताल ने भी आंख के संकेत से उत्तर दे दिया।
विक्रमा अपने आसन से उठी और कक्ष के मध्य में निर्धारित स्थान पर आकर, सबको नमन कर बैठ गई।
उसने वाद्यमंडली से कहा- 'मेघमल्हार....।' मेघमल्हार की स्वर-लहरियां वातावरण में थिरकने लगीं।
विक्रमा ने गंभीर और मधुर स्वर से मेघमल्हार राग की आराधना प्रारम्भ की।
कण्ठ में पीड़ा और कसकथी। राग उत्कट था-गीत में धरती अपने प्रियतम मेघ से मिलने की तड़प दिखा रही थी।
दो घटिका के पश्चात् सभी ने देखा कि भवन के बाहर आकाश में बिजली चमक रही है। बादल गरज रहे हैं। रिमझिम-रिमझिम वर्षा हो रही है।
और जैसे-जैसे मेघमल्हार राग उत्कट होने लगा, वैसे-वैसे मेघमाला का ताण्डव विकराल होता गया और सभी को यह अनुभव होने लगा कि बाहर सघन वर्षा हो रही है।
सुकुमारी तो विक्रमा की शक्ति से पहले ही परिचित थी। यह दूसरा महान् चमत्कार देखकर उसका मन अत्यधिक उल्लसित हो उठा और उसने सोचा-यदि यह गायिका विक्रमा पुरुष होती तो आज ही इसको वरमाला पहनाकर अपने प्रियतम के रूप में स्वीकार कर लेती, पर...!
विक्रमा अपने गीत के द्वारा विरह की वेदना को उद्दीप्त कर नारी-हृदय में प्रियतम की मिलन-तृष्णा को और अधिक उग्र कर चुकी थी।
वीर विक्रमादित्य १११