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________________ में लिया है; अन्यथा इतना परिवर्तन अशक्य है। अग्निवैताल अपनी मस्ती में था। उसे केवल रात्रि में ही अपना करिश्मा दिखाना था । सांझ हुई। देवी विक्रमा और राजकन्या - दोनों ने कार्यक्रम की पूर्व रूपरेखा तैयार की और उसी के अनुसार साज-सज्जा कर खण्ड को तैयार किया । आचार्या मंजरी देवी और वाद्यमंडली की स्त्रियां आ गईं। राजकुमारी ने आचार्या का भावभीना स्वागत किया । आचार्या ने राजकुमारी को हृदय से लगाया । इतने में ही रूपमाला, कामकला, मदनमाला तथा भट्टमात्र आदि भी पहुंच गए। उनके साथ चार-पांच वाद्यकार भी आ गए। पुरुषों के आगमन को देखकर आचार्या मंजरी देवी को भी आश्चर्य हुआ । तत्पश्चात् महाराजा शालिवाहन, महादेवी विजयारानी, महाराजकुमार जितवाहन, नरेन्द्रदेव, नगरसेठ आदि के रथ आने लगे । राजकुमारी ने सबका स्वागत किया। किन्तु माता का हृदय यह जानने के लिए आतुर था कि पुत्री में वह परिवर्तन कैसे घटित हुआ। आतुर मन को शान्त कैसे किया जाए ? आने वाले पुरुषों का भी आश्चर्य शान्त नहीं हो रहा था। जिस राजकुमारी के आवास में कोई भी पुरुष प्रवेश नहीं कर सकता और यदि भूलकर प्रवेश कर जाता तो वह जीवित रह नहीं सकता; उसके आवास में आज एक नहीं, अनेक पुरुष आ रहे हैं। यह चमत्कार कैसे हुआ ? २२. विवाह की योजना राजकन्या के भवन में इस प्रकार पुरुषों का आगमन सबके मन में आश्चर्य पैदा कर रहा था । राजकुमारी अपनी माता के पास बैठी थी। माता के हृदय में अनेक प्रश्न उभर रहे थे । परन्तु उसे संकोच हो रहा था कि इतने समूह में कन्या को कैसे पूछे कि उसमें यह परिवर्तन घटित कैसे हुआ ? तीनों बहनें एक ओर बैठी थीं। राजकुमारी की वाद्यमंडली यथास्थान नियोजित हो गई। रूपमाला के वाद्यकार भी बैठ गए थे। अग्निवैताल भी पुरुष वेश में बैठ गया था। उसने मन में भी राजकुमारी द्वारा किये जाने वाले पुरुष-सत्कार से आश्चर्य उमड़ रहा था । उसने विक्रमारूपी अवंतीनाथ को गुप्त रूप में पूछने का विचार किया, किन्तु अभी उसके लिए अवसर नहीं था । वीर विक्रमादित्य १०६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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