________________
'ऐसा कलाकार मुझे कहां मिल पाएगा? मैं एक राजकन्याहूं और मेरी एक मर्यादा है। मैं उसे कहां ढूंढने जाऊंगी?'
विक्रमा के मन में विचार आया कि स्वयंवर रचा जाए। फिर उसने सोचा, इसमें तो कालक्षेप बहुत हो जाएगा। वह बोली- 'राजकुमारीजी! आपकी बात सत्य है। यदि स्वयंवर रचा जाए तो भी वैसे कलाकार उसमें भाग लेने नहीं आते। किन्तु आप अपने माता-पिता को एक बात अवश्य कह दें।'
'कौन-सी बात?' ___'आज से मेरे मन में पुरुष जाति के प्रति कोई रोष नहीं है और मैं विवाह करने के लिए भी तैयार हूं, किन्तु इसमें शर्त एक ही है कि मैं किसी नौजवान संगीतकार को ही अपना पति बनाऊंगी।' विक्रमा ने कहा।
राजकुमारी ने तत्काल कहा-'सखी! आज तुम्हारा संगीत सुनने के लिए मेरे माता-पिता यहां आएंगे। तुम उनको सारी बात बता देना।'
'अच्छा, किन्तु आज की इस संगीत-गोष्ठी में महामंत्री, आपके चाचा, सेनापति आदि आएं तो उन्हें भी आनन्द आएगा।' विक्रमा ने कहा।
दो क्षण सोच-विचार कर राजकुमारी ने अपनी सहमति दी और तत्काल माधवी को बुलाकर सारी बात समझाई।
राजकुमारी की बातों को सुनकर माधवी अवाक्रह गई-किन्तु वह मस्तक झुकाकर चली गई।
और जब महाराज शालिवाहन को यह संदेश मिला तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। पुरुष जाति के प्रति घृणा करने वाली पुत्री में यह अचानक परिवर्तन कैसे आ गया? उन्होंने माधवी से पूछा- 'माधवी! राजकुमारी में यह परिवर्तन कैसे आया, तुझे कोई कारण प्रतीत नहीं हो रहा है?'
'कृपानाथ ! अवंती की प्रसिद्ध गायिका देवी विक्रमा वहां आयी हुई हैं, यह तो आपको विदित ही है। उनके संसर्ग से राजकुमारीजी में परिवर्तन आया हो, ऐसा मेरा अनुमान है।
'ओह! तब तो देवी विक्रमा ने मेरे पर यह महान् उपकार किया है', कहकर महाराज अन्त:पुर में महादेवी को यह संवाद सुनाने के लिए गए।
महाराजा को संदेश देकर माधवी रूपमाला के भवन में गई और देवी विक्रमा के साथ आए हुए भट्टमात्रजी तथा अन्य पुरुष वाद्यकारों को साथ ले आने का संदेश दिया।
रूपमाला बहुत आश्चर्यान्वित हुई, किन्तु उसकी दोनों बहनों तथा भट्टमात्रजी ने समझ लिया कि महाराजा विक्रमादित्य ने राजकन्या को अपने प्रभाव १०८ वीर विक्रमादित्य