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62 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन लिये उसने अपनी दासी को सुदर्शन के पास भेजा। दासी ने सुदर्शन के पास जाकर कहा कि हे महापुरूष ! तुम यहाँ निश्चिन्त हो, लेकिन तुम्हारा मित्र अस्वस्थ हो रहा है।" दासी की बात सुनते ही मित्र को देखने की इच्छा से सुदर्शन दासी के साथ कपिला ब्राह्मणी के घर उस कक्ष में गया जहाँ कपिला ब्राह्मणी लेटी थी। सुदर्शन के कुशल समाचार पूंछने पर कपिला ने रति चेष्टायुक्त मधुरवाणी में स्वागत करते हुये उसका हाथ पकड़ लिया। सुदर्शन अपने पुरूष-मित्र के स्थान पर एक रतिकामा स्त्री को देखकर बहुत घबराया। किन्तु उसने अपने को नपुंसक बताकर कपिला ब्राह्मणी से पीछा छुड़ाया और शीघ्रता से घर लौट आया। (पंचम सर्ग)
एक बार ऋतुराज वसन्त के आगमन पर चम्पापुरी के सभी निवासी वन-विहार हेतु एक उद्यान को गये। उद्यान में रानी अभयमती भी पहुँची। उसी समय सुदर्शन की पत्नी मनोरमा भी अपने पुत्र को लेकर उद्यान में आई। उसे देखकर वहाँ पर आई हुई कपिला ब्राह्मणी ने रानी से उसका परिचय पूँछा। रानी से सुदर्शन को पुत्रवान जानकर कपिला ने कहा कि सुदर्शन तो नपुंसक है, वह पुत्र उसका कैसे हो सकता है ? पर जब रानी को कपिला की बात का विश्वास नहीं हुआ तो उसने अपने साथ घटित पूर्ण वृत्तान्त रानी को कह सुनाया, जिसे सुनकर रानी ने कहा कि कपिला, सुदर्शन ने झूठ कहकर तुझे धोखा दिया है। इस पर कपिला ने रानी को ही चुनौती दे दी कि वही सुदर्शन को अपने वश में कर दिखाये।
__कपिला की चुनौती ने रानी के मन में भी सुदर्शन के प्रति कामभाव जाग्रत कर दिया। वह निरन्तर सुदर्शन की याद कर दुबली होने लगी। रानी की दशा देखकर दासी ने इसका कारण पूछा तो रानी ने अपनी मनोव्यथा का सही-सही कारण उसे बता दिया। दासी ने पर-पुरूष से दूर रहने के लिये रानी को बहुत समझाया पर रानी के ऊपर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ। रानी ने उसे डाँटते हुए कहा- "तूं उपदेश बन्द कर और सुदर्शन को यहाँ लाने का प्रबन्ध कर।" रानी की ऐसी हठ-पूर्ण बातों को सुनकर दासी ने अपनी स्वामिनी की मनोभिलाषा पूर्ण करने में ही अपना भला समझा। इस समय स्वामिनी की आज्ञा का पालन करना ही उचित