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________________ 36 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन के दीक्षार्थ चले जाने पर त्रिशला माता के करूण विलाप का भी वर्णन किया गया है। 9. जिस स्थान पर भगवान ने दीक्षा ली उस स्थान पर इन्द्राणी द्वारा पहिले से ही साँथिया पूर देने का भी उल्लेख कवि ने किया है। कवि नवलशाहकृत वर्धमानपुराण __श्री सकलकीर्ति के संस्कृत वर्धमान-चरित के आधार पर कवि नवलशाह ने छन्दोबद्ध हिन्दी भाषा में वर्धमान-पुराण की रचना की है। यह रचना, दोहा, चौपाई, सोरठा, गीता, जोगीरासा, सवैया आदि अनेक छंदों में की गई है। जो पढ़ने में रोचक और मनोहर है। यह वि. सं. 1825 के चैत सुदी 15 को पूर्ण हुई है। भगवान महावीर के चरित का महत्त्व .मानवता के उद्धारक, युग निर्माता तथा पांच महाव्रतों के सम्बल से समाज को संवारने वाले चौबीसवें तीर्थंकर भ. महावीर के चरित्र की महत्ता से जैनसाहित्य समलंकृत है। उन्होंने लोकमंगल की भावना से जो कुछ कहा, गणधरों ने उसे सूत्रबद्ध कर' विशाल वाड्मय की थाती के रूप में हमें प्रदान किया है। महावीर के साहस, पौरूष और प्रतिभा से सब लोग बेहद प्रभावित हुये। अल्पावस्था में वर्द्धमान ने जो कर दिखाया वह अन्यत्र सम्भव नहीं। इसी अवस्था में सत्य, अहिंसा, अस्तेय आदि के अंकुर भी उनके अन्तस् में उभरने लगे थे। कल्पसूत्र के अनुसार महावीर दीक्षित होकर 12 वर्ष से कुछ अधिक काल तक निर्मोह-भाव से साधना में निमग्न रहे। .. आचारांग सूत्र में महावीर की अद्वितीय कठोरतम साधना का चित्रण किया गया है। आचार्य भद्रबाह ने कहा है कि महावीर की साधना सभी तीर्थंकरों में कठोरतम थी। यही कारण है कि जैनधन में तीर्थंकर महावीर का स्थान सर्वोपरि है। संसार-सागर से समाज को उबारने के लिये महावीर अपने वैभवपूर्ण जीवन को त्याग कर कठोरतम साधना करके केवली, सर्वज्ञ, - महाव
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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