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________________ उपसंहार 329 आचार्य ज्ञानसागर द्वारा रचित वीरोदय महाकाव्य की महत्ता और तीर्थकर महावीर के चरित की विशेषता को ध्यान में रखते हुये हमने इस शोध-प्रबन्ध में इस महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया है। शोध-प्रबन्ध के प्रथम अध्याय में तीर्थकर महावीर के चरित से सम्बन्धित प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों का परिचय देकर उनमें प्राप्त महावीर चरित की समीक्षा की है। इस अ ययन में राजस्थानी साहित्य के महावीरचरित और हिन्दी साहित्य में लिखित महावीर सम्बन्धी चरित ग्रन्थों का मूल्यांकन किया है। ___ शोध-प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में वीरोदय महाकाव्य की पृष्ठ-भूमि और उसके चारित्रिक विकास को प्रस्तुत करने की दृष्टि से इस महाकाव्य के रचयिता आचार्य ज्ञानसागर का जीवन परिचय और व्यक्तित्व को स्पष्ट किया। उसके बाद आचार्य ज्ञानसागर के प्रमुख ग्रन्थों की समीक्षा प्रस्तुत की है। जिनमें जयोदय महाकाव्य, सुदर्शनोदय, भद्रोदय और दयोदय चम्पू का वैशिष्ट्य प्रतिपादित किया गया है। इन ग्रन्थों के मूल्यांकन से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि आचार्य ज्ञानसागर चरितकाव्य लिखने में सिद्धहस्त हैं। वीरोदय-चरित कवि की दूसरी प्रौढ़ रचना है। इन संस्कृत काव्यों में कवि ने जैन पौराणिक परम्परा को सुरक्षित रखते हुए शील की महिमा, गृहस्थाचार का महत्त्व और अहिंसाव्रत की उपादेयता आदि पर विशेष प्रकाश डाला है। वीरोदय के तृतीय अध्याय में वीरोदय महाकाव्य का परिचय प्रस्तुत करने के साथ-साथ काव्य की महत्ता को बतलाते हुए भगवान महावीर के जन्म से पूर्व भारत की सामाजिक व धार्मिक स्थिति कैसी थी ? इसका चित्रण करने के उपरान्त पूर्व-भवों का वर्णन करते हुए भ. महावीर के समग्र जीवन-दर्शन को प्रस्तुत किया है। उनके उपदेशों का तात्कालिक राजाओं पर प्रभाव को दर्शाते हुए गृहस्थ-धर्म व मुनि-धर्म के योग्य कार्यों का वर्णन करते हुए कवि ने गृहस्थ को बारह व्रत व मुनियों को 28 मूल गुणों का निरतिचार पालन करने की बात कही है। इस महाकाव्य में इन दोनों धर्मों का विस्तृत
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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