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भगवान महावीर के सिद्धान्तों का समीक्षात्मक अध्ययन पूर्ण आदर-भाव रखने की शिक्षा भी दी गई है। ज्ञानेन चानन्दमुपाश्रयन्तश्चरन्ति ये ब्रह्मपथे सजन्तः । तेषां गुरूणां सदनुग्रहोऽपि कवित्वशक्तौ मम विघ्नलोपी।। 6 ।।
-वीरो.सर्ग.1। जो ज्ञानानन्द का आश्रय लेते हुए ब्रह्म-पथ (आत्मकल्याण के मार्ग) में अनुरक्त हो आचरण करते हैं, ऐसे ज्ञानानन्द रूप ब्रह्म-पथ के पथिक गुरूजनों का सत् अनुग्रह ही विघ्नों का लोप करने वाला है। रत्नत्रय का स्वरूप
वस्तुतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र स्वरूप आत्मा की प्रवृत्ति रत्नत्रय है'। बिना रत्नत्रय को प्राप्त किये आज तक किसी न कहीं और कभी भी शुद्ध चिद्रूप को प्राप्त नहीं किया। देखो तप के बिना ऋद्धि, पिता के बिना पुत्री और मेघ के बिना वर्षा नहीं हो सकती। पद्मनन्दिपन्चविंशतिका के एकत्व सप्तत्ति अधिकार (14वें श्लोक) में कहा है कि आत्मा का निश्चय दर्शन है, आत्मा का बोध ज्ञान है, आत्मा में ही स्थिरता चारित्र है- ऐसा योग शिवपद (मोक्षमार्ग) का कारण है।
हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हता चाज्ञानिनः क्रिया। धावन् किलान्धको दग्धः पश्यन्नपि च पंगुलः।।
-तत्त्वार्थवार्तिक पृ.14/26 | मोक्षमार्ग के अन्तर्गत ही आचार्यों ने तत्त्व-चिन्तन का विवेचन तथा आचार विषयक सिद्धान्तों का विश्लेषण किया है। दूसरे शब्दों में सम्यग्दर्शन के अन्तर्गत तत्त्वमीमांसा, सम्यग्ज्ञान के अन्तर्गत ज्ञानमीमांसा तथा सम्यक्चारित्र के अन्तर्गत चारित्र-मीमांसा समाहित है। निश्चय और व्यवहार मोक्षमार्ग
निश्चय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र से तन्मय हो, अन्य परद्रव्य को न करता है, न छोड़ता है, वही मोक्षमार्ग है। तात्पर्य यह है कि जो जीव पर पदार्थ से भिन्न आत्मस्वरूप में चरण करता है, उसे ही