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वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन लिखा है कि - कौमारमत्राधिगमय्य कालं विद्यानुयोगेन गुरोरथालम् । मिथोऽनुभावात्सहयोगिनीया गृहस्थता स्यादुपयोगिनी या।। 32।।
-वीरो.सर्ग.18 कुमारकाल में गुरू के समीप रहकर विद्योपार्जन में काल व्यतीत करे। विद्याभ्यास करके युवावस्था में योग्य सहयोगिनी के साथ विवाह करके न्याय पूर्वक जीविकोपार्जन करते हुए उपयोगी गृहस्थ अवस्था को प्रेमपूर्वक व्यतीत करे। शिक्षणपद्धति
___ छह वेदों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास (पुराण) और निघंटु का उल्लेख है। वेदांगों में संख्यान (गणित), शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरूक्त और ज्योतिष का उल्लेख है। उपांगों में वेदांगों में वर्णित विषय और षष्ठितंत्र का कथन है। उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में चतुर्दश विद्या-स्थानों को गिनाया गया है - छह वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्म शास्त्र ।
जैन-आगमों में अर्वाचीन माने जाने वाले अनुयोगद्वार और नन्दिसूत्र में लौकिक श्रुत का उल्लेख है :- भारत, रामायण", भीमासुरूकरण, कौटिल्य | घोटक मुख (घोडयमुह)2 सगदिमहिआउ, कप्पासिउ, णागसुहुम, कनकसप्तति' (कणगसन्तरी), बैशिक (वेसिय), वैशेषिक (वइसेसिय), बुद्धशासन, कपिल, लोकायत, षष्ठितंत्र (सद्वितंत), माठर, पुराण, व्याकरण, नाटक बहत्तर कलाएँ और अंगोपांग सहित चार वेद। जैनसूत्रों में 72 कलाओं का उल्लेख अनेक स्थानों पर है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हर कोई इन सभी कलाओं में निष्णात होता था। इन कलाओं का सम्पादन करना एक ऐसा उद्देश्य था जिसकी पूर्ति शायद ही कभी हो सकती हो। विद्या-केन्द्र -
प्राचीन भारत में राजधानियाँ, तीर्थस्थान और मठ-मंदिर शिक्षा के केन्द्र थे। राजा, महाराजा तथा सामन्त लोग विद्या-केन्द्रों के आश्रयदाता