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________________ 260 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन श्री ज्ञानसागर की जिनेन्द्रदेव के प्रति दृढ़ भक्ति है। उनके संस्कृत-भाषा में लिखे गये प्रत्येक ग्रन्थ का शुभारम्भ ही जिनदेव की स्तुति से हुआ है। उनके काव्यों के नायक भ. जिनेन्द्रदेव के भक्त हैं। इसके अतिरिक्त पात्रों द्वारा किया गया जिनदेव का पूजन भी कवि की भगवान जिनेन्द्र में आस्था को अभिव्यक्त करता है। भगवान जिनेन्द्र की मूर्तियों एवं जिनालयों पर कवि की आस्था भी स्पष्ट है।" प्रायः सनातन धर्मावलम्बी हिन्दुओं की बालिकाएं अपने विवाह के अवसर पर सर्वप्रथम गौरी पूजन के लिए जाती हैं, परन्तु कवि ने ऐसे अंवसर पर जिनपूजन की प्रेरणा दी है। 'जयोदय' की नायिका सुलोचना अपने विवाह के अवसर पर श्री जिनदेव के ही पूजन हेतु जाती है। यथा – पूर्वमत्र जिनपुंगवपूजामाचचार नृपनाथ-तनूजा। यत्र भूत्रयपतेरथ भक्तिः सैव सम्भवति सत्कृतपक्तिः ।। 63 ।। -जयो.सर्ग.5। __सुलोचना ने पहले भगवान जिनेन्द्रदेव की पूजा की, क्योंकि जहाँ भी त्रिभुवनपति भगवानकी भक्ति हुआ करती है, वहीं पूर्ण रूप से पुण्य का परिपाक होता है। ___मंत्र-शक्ति पर भी कवि का विश्वास है। ‘णमो अरिहंताणं' इस मंत्र के बल से ही एक ग्वाले ने सेठ के पुत्र के रूप में जन्म लिया और जिन-भक्ति के फलस्वरूप मोक्ष भी प्राप्त किया। गारूड़िक ने अपनी मन्त्र-शक्ति से ही राजा सिंहसेन को काटने वाले दुष्ट सर्प की पहिचान की।12 कवि ने इन्द्राणी, श्री ही आदि देवियों, एवं इन्द्र, कुबेर इत्यादि देवगणों की भी सत्ता स्वीकार की है। जिस प्रकार सनातन धर्म वाले इन देव-देवियों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के शासन में स्वीकार करते हैं, उसी प्रकार कवि ने अपनी परम्परानुसार इन देव-देवियों को जिनेन्द्रदेव का सेवक बताया है। कवि ने मानव-जाति के अतिरिक्त एक और जाति बताई है – व्यन्तर एवं व्यन्तरी। कवि के अनुसार जब कोई व्यक्ति प्रतिशोध की भावना से आत्मघात करता है तब उसका इसी योनि में जन्म होता है। इस
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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