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________________ 225 वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन यहाँ आलम्बन-विभाव विशाखनन्दी है। उसके विरोधी क्रिया-कलाप उद्दीपन-विभाव हैं। स्तम्भ, कम्प अनुभाव हैं। चिन्ता, उद्वेग, चपलता आदि व्यभिचारीभाव हैं। पूर्वजन्म में संस्कार रूप में महावीर महापुरूष की आत्मा में विद्यमान क्रोध रूपी स्थायीभाव रौद्ररस का पोषक है। सन्दर्भ - 1. संस्कृत शब्द कोश, पृष्ठ सं. 135 । 2. का.मी.द्वि.अ. पृष्ठ 71 3. काव्य द. 2/11 4. वक्रोक्ति जी. 1/6 तथा 2 की वृत्ति। 5. ध्वन्या. 2/19। सरस्वती कण्ठाभरण 5/11 की वृत्ति । 7. का. मी. पृ. 14। 8. आचार्य मम्मट, काव्यप्रकाश अष्टम उल्लास कारिका 87 सूत्र 67 । 9. काव्यप्रकाश नवम उल्लास 84 कारिका सूत्र 119 | 10. काव्यप्रकाश 10/1091 11. आचार्यमम्मट, काव्यप्रकाश दशम कारिका 97 सूत्र 147 | 12. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 114 सूत्र 173 | 13. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 96 सूत्र 145 | 14. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 131 सूत्र 197 | 15. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 132 सूत्र 199 | 16. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 92 सूत्र 137 | 17. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 110 सूत्र 165 | 18. काव्यप्रकाश दशम उल्लास कारिका 119 सूत्र 184 | 19. वही. 139 सूत्र 206 |
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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