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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा व विस्मय ये आठ स्थायीभाव कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त निर्वेद को भी नवमा स्थायीभाव माना गया है। काव्यप्रकाशकार ने लिखा है -
'निर्वेदस्थायी भावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः 25
इस प्रकार नौ स्थायीभाव व उनके श्रृंगार, हास्य, करूण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स अद्भुत व शान्त ये नौ ही रस माने गये हैं। अंगरस
वीरोदय में प्रधान रस शान्तरस है जो इस महाकाव्य का अंगीरस है। इसके अतिरिक्त कुछ और रस भी इस महाकाव्य में हैं, जो शान्त रस की अपेक्षा अप्रधान है। इसीलिये वे रस शान्तरस के अंग- रस के रूप में उपस्थित हुए हैं। जैसे- हास्य रस, अद्भुत रस, वात्सल्य रस, श्रृंगार रस व करूण रस इत्यादि । शान्त रस का रंग कुन्द-पुष्प के समान श्वेत है अथवा चन्द्रमा के समान है, जो सात्विकता का द्योतक है।
___पुरूषों को मोक्षरूप पुरूषार्थ की प्राप्ति कराने वाले श्री भगवान नारायण ही रस के देवता हैं। संसार की निःसारता, दुःखमयता और तत्त्वज्ञानादि इसके आलम्बन विभाव हैं। महर्षियों के आश्रम, भगवान के क्रीडाक्षेत्र, तीर्थस्थान, तपोवन, सत्संग आदि इसके उद्दीपन विभाव है। यम-नियम, यतिवेष का धारण करना, रोमाञ्च आदि इसके अनुभाव हैं। निर्वेद, स्मृति, धृति, स्तम्भ, जीवदया, मति, हर्ष आदि इसके व्यभिचारीभाव हैं।
इस रस का का प्रादुर्भाव होने पर व्यक्ति में ईर्ष्या, द्वेष, ममत्व आदि भावों का सर्वथा अभाव हो जाता है। वह सुख-दुख से रहित एक विलक्षण ही आनन्द की प्राप्ति करता है। इसके अतिरिक्त श्रृंगार आदि सांसारिक रस हैं, किन्तु अलौकिक आनन्द की अनुभूति कराने वाले शान्त रस में हम सर्वश्रेष्ठ पुरूषार्थ मोक्ष की झलक देखते हैं। श्रृंगार को यदि रसराज की पदवी दी गई है तो इसे (शांत रस) रसाधिराज कहना चाहिये; क्योंकि इसके प्रादुर्भाव के समय अन्य सभी रसों की सत्ता इसी में विलीन हो जाती
है।