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________________ 192 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन उदाहरण- सिद्विस्तु विश्लेषणमेतयोः स्यात् सा साम्प्रतं ध्यातिपदैकपोष्या। स्वाध्यायमेतस्य भवेदथाधो यज्जीवनं नाम समस्ति साधोः।। 22।। -वीरो.सर्ग.18। प्रयोग स्थल - चतुर्थ सर्ग - 5। नवम सर्ग - 33-34 | षोडश सर्ग - 311 सप्तदश सर्ग – 17, 21 । उन्नीसवाँ – 1, 5, 9, 22, 30, 32 | बीसवाँ सर्ग- 231 12. भुजंगप्रयात - वीरोदय के 12 पद्यों में इस छन्द का प्रयोग हुआ है। लक्षण - ___'भुजंगप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः ।' उदाहरण -गृहस्थस्य वृत्तेरभावो ह्यकृत्यं भवेत्त्यागिनस्तद्विधिर्दुष्टनृत्यम् । नृपः सन् प्रदद्यान्न दुष्टाय दण्डं क्षतिः स्यान्मुनेरेतदेवैम्य मण्डम् ।। 19।। -वीरो.सर्ग.16। 13. मालिनी छन्द - वीरोदय महाकाव्य में मालिनी छन्द के दो ही उदाहरण दृष्टव्य हैं। लक्षण - "ननमयययुतेयं मालिनी भोगलोकैः" ।। उदाहरण - समवशरणमेतन्नामतो विश्रुताऽऽसी-जिनपतिपदपूता संसदेषा शुभाशीः । जनि-मरणजदुःखाद्दुःखितो जीवराशिरिह समुपगतः सन् सम्भवेदाशु काशीः ।। प्रयोग स्थल-चतुर्थ सर्ग- 63। 53 – वीरो.सर्ग.14 | 14. शिखरिणी - आ. श्री ने एक-दो जगह इस छंद का भी प्रयोग किया है। लक्षण –'रसै रूद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी'। उदाहरण पिता पुत्रश्चायं भवति गृहिणः किन्तु न यते - स्तथैवायं विप्रो वणिगिति च बुद्धिं स लभते ।।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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