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________________ वीरोदय का स्वरूप 177 महावीर ने योग निरोधार्थ षष्ठोपवास धारण किया और कायोत्सर्ग द्वारा कर्म-प्रकृतियों का विनाश किया। एभिः समं त्रिभुवनाधिपतिर्विहत्य, त्रिंशत्समाः सकलसत्वहितोपदेशी। पावापुरस्य कुसुमार्चित पादपानां, रम्यं श्रियोपवनमापि ततो जिनेंद्रः।। अन्य आगम-ग्रन्थों से भी अवगत होता है कि तीर्थकर महावीर ने आयु के दो दिन अवशिष्ट रहने पर विहार रूप काययोग, धर्मोपदेश रूप वचन योग एवं क्रिया रूप मनोयोग का निरोध कर प्रतिमायोग धारण किया और पावापुर के बाहर अवस्थित सरोवर के मध्य में कायोत्सर्ग ग्रहण कर अघातिया कर्मों की पचासी प्रकृतियों का क्षय किया। कृत्वा योगनिरोधमुज्झितसभः षष्ठे न तस्मिन्वने। व्युत्सर्गेण निरस्य निर्मलरूचिः कर्माण्यशेषाणि सः।। स्थित्वेन्दावपि कार्तिकासित चतुर्दश्यां निशान्ते स्थिते। स्वातौ सन्मति राससाद भगवान्सिद्धिं प्रसिद्धश्रियम् ।। ___भ. महावीर ने कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वाति-नक्षत्र के रहते हुए ई. पू. 527 में मोक्ष-पद प्राप्त किया। श्वेताम्बर-ग्रन्थोंकी मान्यता के अनुसार तीर्थकर महावीर पावानगरी के राजा हस्तिपाल के रज्जुक सभा-भवन में अमावस्या की समस्त रात्रि धर्म-देशना करते हुए मोक्ष पधारे। आचार्य ज्ञानसागर ने वीरोदय महाकाव्य में भ. महावीर के मोक्ष गमन के प्रसंग में लिखा है कि शरद ऋतु में अति मृदुल शरीर को धारण करने के लिए कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि में एकान्त स्थान को प्राप्त हुए। उसी रात्रि के अन्तिम समय में वे धीर वीर महावीर पावानगरी के उपवन में मुक्ति लक्ष्मी के अनुगामी बने और उसके मार्ग का अनुसरण करते हुए वे सदा के लिये चले गये। अपि मृदुभावाधिष्ठशरीरः सिद्धिश्रियमनुसतु वीरः । कार्तिककृष्णाधीन्दुनुमायास्तिथेनिशायां विजयनमथाऽयात्।। 20 ।। -वीरो.सर्ग.21 ।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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