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________________ वीरोदय का स्वरूप 157 प्रभोः प्रभामण्डलमत्युदात्तं न कोटिसूर्यैर्यदिहाभ्युपात्तम् । यदीक्षणे सम्प्रभवः क्षणेन स्मो नाम जन्मान्तरलक्षणेन।। 21 ।। -वीरो.सर्ग.13। मोह प्रभावप्रसरप्रवर्ज श्रीदुन्दुभिर्य ध्वनिमुत्ससर्ज। समस्त भूव्यापिविधिं समर्जन्नानन्दवारा शिरिवाद्यवर्जः।। 23 ।। वाचां रूचा मेघमधिक्षिपन्तं पर्याश्रयामो जगदेकसन्तम् । अखण्डरूपेण जगज्जनेभ्योऽमृतं समन्तादपि वर्षयन्तम्।। 24।। -वीरो.सर्ग.13। समवशरण का वैशिष्ट्य समवशरण में सर्वत्र ज्ञानालोक व्याप्त था। रात-दिन का भेद मिट गया था और प्रकाश ही प्रकाश सर्वत्र दिखलाई पड़ता था। समवशरण में आये प्राणियों के हृदय से वैर, द्वेष, क्रोध हिंसा एवं प्रतिशोध की भावनायें समाप्त हो गई थीं और परिणाम इतने निर्मल हो गये थे कि वे जन्मजात शत्रुता को भी विस्मृत कर चुके थे। गाय-सिंह, मृग-व्याध, मार्जार-मूषक बड़े निर्मल एवं शान्त भाव से एक साथ वहाँ बैठे थे। महावीर की सौम्य मुद्रा सभी को अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी। उनकी मुखाभा दिव्यभाषा बनी हुई थी। उनकी मुद्रा अविचल, वचनातीत और भाषातीत थी। अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तमुख और अनन्तवीर्य की उज्ज्वलता सर्वत्र विद्यमान थी। दिव्यध्वनि का प्रभाव कसायपाहुड और तिलोयपण्णत्ती में दिव्यध्वनि को तालु-दन्त, ओष्ठ तथा कण्ठ के हलन-चलन रूप व्यापार से रहित होकर एक ही समय में भव्य-जनों को आनन्द देने वाली बताया है - अट्ठरस-महाभासा खुल्लय-भासा सयाइ सत्त-तहा। अक्खर-अणक्खरप्पय सण्णी-जीवाण सयल-भासाओ।।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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