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________________ 146 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन खेलना, 2. शराब पीना, 3. मांस खाना, 4. वेश्या सेवन करना, 5. शिकार खेलना, 6. चोरी करना, 7. परस्त्री सेवन करना। ___ अष्ट मूलगुणों, भक्ष्याभक्ष्य-विमर्श, व्यसन आदि का यद्यपि आचार्यश्री ने अलग-अलग उल्लेख नहीं किया है फिर भी महावीर के उपदेशों में उन्होंने सभी के लिए उचित-अनुचित कार्यों का संकेत अवश्य किया है। जैसे - पलास्याशनं चानकाङ्गिप्रहारः सनाग् वा पराधिष्ठितस्यापहारः। न कस्यापि कार्य भवेज्जीवलोके ततस्तत्प्रवृत्तिः पतेत्किनसोऽके ।। 21|| -वीरो.सर्ग.16 । इस श्लोक में आचार्यश्री ने लिखा है कि माँस खाना, निरपराध प्राणियों को मारना, दूसरे के स्वामित्व वाली वस्तु का अपहरण करना इत्यादि निंद्य कार्य संसार में किसी को भी करने योग्य नहीं हैं। इन दुष्कृत्यों में प्रवृत्ति करने वाला क्यों न पाप-गर्त में गिरेगा ? इसलिये व्यक्ति को मांस आदि का भक्षण नहीं करना चाहिए। इनका सर्वथा त्याग ही पाप के दण्ड से बचने का उपाय है। पले वा दलेवाऽस्तु कोऽसोविशेषः द्वये प्राणिनोऽङ्गप्रकारस्य लेशः। वदन्नित्यनादेयमुच्चारमत्तु पयोवन्न किं तत्र तत्सम्भवत्तु ।। 23।। -वीरो.सर्ग.16। अतः प्राणी-जनित वस्तुओं में जो पवित्र होती हैं वही ग्राह्य हैं, अपवित्र नहीं। अतः शाक-पत्र व दूध ग्राह्य हैं, माँस और गोबर ग्राह्य नहीं दलाद्यग्निना सिद्धमप्रासुकत्वं त्यजेदित्यदः स्थावराङ्गस्य तत्त्वम्। पलं जङ्गमस्याङ्गमेतत्तु पक्वमपि प्राघदं प्रासुकं तत्पुनः क्व ।। 24।। -वीरो.सर्ग.16। शाक-पत्र आदि अग्नि में पकने के बाद प्रासुक (निर्जीव) हो जाते हैं, क्योंकि वे स्थावर ऐकेन्द्रिय जीव के अंग हैं, किन्तु मांस चलते-फिरते जंगम जीवों के शरीर का अंग है, वह अग्नि में पकने पर भी प्रासुक नहीं
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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