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________________ वीरोदय का स्वरूप ___ 129 प्रकार के स्वार्थ और विकारों को जीतकर स्वतन्त्र /मुक्त होना चाहते थे। उनका मानना था कि जो संकल्प-विकल्पों से मुक्त हुआ है और जिसने शरीर और इन्द्रियों पर पड़ी हुई परतों को हटाया है, वही निःस्वार्थ जीवन-यापन कर सकता है। उनके व्यक्तित्व में निःस्वार्थ प्रवृत्ति विद्यमान थी। वे धर्मनेता, तीर्थकर, उपदेशक एवं संसार के मार्ग-दर्शक थे। जो भी उनकी शरण या छत्रछाया में पहुँचा, उसे ही आत्मिक शान्ति उपलब्ध हुई। निस्सन्देह वे विश्व के अद्वितीय क्रान्तिकारी, तत्त्वोपदेशक और जननेता थे। उनकी क्रान्ति एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी। उन्होंने सर्वतोमुखी क्रान्ति का शंखनाद किया। इनसभी गुणों की विवेचना करते हुये आचार्यश्री ने वीरोदय महाकाव्य में लिखा है - किन्तु वीरप्रभुर्वीरो हेलया तानतीतवान् । झंझानिलोऽपि किं तावत्कम्पयेन्मेरूपर्वतम् ।। 36 ।। -वीरो.सर्ग.10। वीर प्रभु तो वास्तविक वीर थे, उन्होंने सभी प्रसंगों को कुतुहलपूर्वक पार करके मेरूपर्वत की तरह विजय प्राप्त की थी। इस प्रकार महावीर का समग्र जीवन-दर्शन क्रान्ति, त्याग, तपस्या, संयम अहिंसा आदि से अनुप्राणित था। सन्दर्भ : 1. वीरोदय महाकाव्य प्रस्तावना, पृ. 1-2 | 2. ज्ञानसागर महाकाव्य एक अध्ययन, पृ. 27-36 | 3. वीरोदय महाकाव्य, सर्ग-4, श्लोक 57-60/ 4. पाराशर स्मृति- 8/321 5. मनुस्मति - 9/3171 6-7. वीरोदय महाकाव्य- 17/17 | 8. व्रात्यकाण्ड - (आ. सायण)
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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